SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चाव के बेठ के मण्डप में जाकर बड़ी सजावट से संघावेव का वर्णन किया। जिसमें सजाओं का और राजकुमारों का माना, उनका नाम-ठाम-वंश वर्णन होना। राधावेध के लिये बारी बारी से उनका उठना, असफल होना, गिरना पड़ना, कांपना, लजित होना, लोगों द्वारा विरस्कार होना, उस समय श्रीचन्द्र का अचानक आना, राघावेध को सिद्ध करना, रथ पर चढ कर निस्पृहता से चले आना. कन्या का विलाप, राजाओं की विदायगी, कुमार को लाने के लिये धोर मंत्री का आना इत्यादि बड़े रोचक ढंग से बयान किया। खुश हुए सेठ ने और दूसरे लोगों ने उसे बहुमूल्य चीजें-धन इनाम में दिपा। श्रीचन्द्रकुमार ने उससे कहा-जो इच्छा हो सो मांग लो-तब वीगारव ने-आपके सुगर के मोड़ों की जोड़ी में से एक मोड़ा दीजिये-मांगा। कुमार ने कहा अरे! मांगका भी तेने क्या मांगा? कोई दारिद्र पनाशक वस्तु तो मांगनी थी। खैर, अपने मित्र गुणचन्द्र को भेजकर सुवेगरथ मंगाया और बीणावं से कहा गायक ! एक घोड़े से तुम्हारा काम नहीं बनेगा। ली यह रथ और यह घोडों की जोड़ी ओर भी धम मालं उसे इमाम में दिया। चारों ओर से बाह ! वाह की जयध्वनि होने लगी।
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy