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________________ ताम्बूल कटु तिक्त 'मुष्ण-मधुर नारं कषायान्वित, वातनं कफनाशनं कृमिहरं दुर्गन्ध निर्नाशनम् । वक्त्रस्याभरणं विशुद्धि करणं कामाग्नि संदीपनं, स्वामिन्नेभि रिदं त्रयोदश गुणै युक्तं प्रसादीकृतम् ।। - स्वामिन् ! पान कडवा-तीखा-गरम-मीठा-खारा कषैला-वादी नाशक-कफ नाशक-कीटाणु नाशक-दुर्गन्धहरने वाला-मुखका अलंकार विशुद्धि करने वाला कामानिको चेतानेवाला इन तेरह गुणों से युक्त होता है । इसका आपने ठीक ही प्रसाद दिया है। कुमार ने कहा यह बाह्य पान के गुण हुए आभ्यंतर पान कैसा होता है ?-तब कुमारी कहती है सन्नाग-पत्राणि मिथः प्रियं वचः सुप्रेम-पूगानि सुदृष्टि-चूर्णकं । . संतोष कपूरे सुगन्ध वर्तिका तवेदृशं बीटकमस्तु मे विभो !। . हे नाथ ! जो परस्पर में प्रेम वचन हैं के ही नागरबेल के पान हैं सुन्दर प्रेम ही जिसमें सुपारी है। सहि दृष्टि ही जिसमें मसाला है। संदोषही जिसमें का। आपके . Jan कुमारी से चतुस द्वारा पूछे आने पर कुमार ने कहा
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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