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________________ सेठ वरदत्त और कुमार श्रीचन्द्रने राजा के सामने बहुमूल्य भेट रखी। राजा ने उसे स्वीकार कर प्रेम के साथ कुमार के लिये वापस कर दीया । कुमार ने भी उसे विनय के साथ मस्तक से लगा, उदार भाव से याचकों में वितीण कर दी। ठीक ही तो है, किया हुआ दान मनुष्य को महत्ता प्रदान करता है। वरदत्त ने कहा राजन् ! आज मेरा अहोभाग्य है जो कुमार का व आपका शुभागमन मेरे गरीब घरमें अतकिंत भावसे हो गया। मेरे जीवन इतिहास में आज से बढ़कर कोई दिन नहीं होगा ऐसा मैं मानता हूँ। वरदत्त के आभार प्रदर्शन करके चुप हो जाने पर राजा दीपचन्द्रने कुमार को लक्ष्य करके कहा-"कुमार ! राजा सुभगांग की राज कुमारी मेरी दौहिती चन्द्रकला नैमित्ति कों के कथनानुसार विवाह की तैयारी के साथ यहां रह रही है। उद्यान में मंदिर में उसने आपके प्रति पूर्व पुण्य संस्कारों से प्रेरित हो पतिभाव धारण कर लिया है। वह अपने संकल्पों पर मेरु के समान दृढ भी है। अतः आप हमारी प्रार्थना से उसका पाणिग्रहण कर उस की इच्छाओं को पूरी करें और हमें कृतकृत्य बनावें। . राजा के बचन सुन कुमारने बडे धीर गंभीर वचनों से कहना शरु किया देव ! बड़े लोगों को उत्तर देना एक
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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