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________________ (१४६ ) करने के लिये घर से निकलना हुआ है और अतर्कित भाव से यहां आना हुआ है ऐसा कहते हुए कुमार को वरदत्तने वडे अनुनय विनय और आदर के साथ घर में लिया । स्नान- भोजन आदि से पूर्व सत्कार किया । गुणचंद्र इस प्रकार रुकने से बहुत प्रसन्न हुआ । कुमार की आज्ञा से वरदत्त की प्रेरणा से गुणचंद्र सुवेग रथ को इसी जगह ले आया । दीपशिखा के व्यवहारियों को पता चला कि कुशस्थल के नगर सेठ - लक्ष्मीदत्त के चिरंजीवी श्रीचंद्र कुमार यहां आये हैं। सबने उन का सुंदर स्वागत किया । सब के बीचमें बैठा श्रीचंद्र शरद् ऋतु के पूर्ण चंद्र की तरह शोभा पाने लगा | वहां उपस्थित भाट चारणों ने कुमार को पहचान कर उन के दिव्य गुणों से भरे कीर्ति काव्य कहने शरु किये। उस समय कुमार और वहां का दृश्य बडा ही दर्शनीय हो रहा था । उधर दीपशिखा के स्वामी दीपचन्द्र देव राजसभा में अपने मन्त्री सामंत सेठ साहूकारों के साथ विराजमान थे । तिलकपुर के मंत्री 'धीर' भी बडे आदरणीय स्थान पर महाराजा के सामने बैठे थे । उन्हीं के साथ आया हुआ वीणारव नाम का मुख्य गायक दूसरे सोलह गयकों के
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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