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________________ ( १२५ ) ". . . S PA Master तुम्हारी सफलता, पर होती । आज इसने अपने यश के साथ मेरे नाम को भी देश देशान्तरों में सुप्रसिद्ध कर दिया है । इसने इन सब विद्याओं को कब किस श्रेष्ठ आचाये से सीखी हैं । छोटी अवस्था वाले इस श्रीचन्द्रकुमार का पौरुष प्रशंसनीय है। __मंत्रिराज श्रीमतिराज ने विनय के साथ महाराज से अर्जे की कि-महाराज ! श्री गुणंधरोपाध्याय ने इस कुमार को कलायें सिखाई हैं । यह मेरे भतीजे का दोस्त है। इसका चरित्र सदा एक आश्चर्य रूप में देख रहा हूँ। यह कब तो स्वयंवर में गया और कब वहां से लौट आया ? कुछ पता नहीं । महाराज ने आश्चर्य करते हुए यह सब जानने के लिये उन पिता पुत्र को आदर के साथ बुलाने का आदेश दिया। ___ इधर राधावेध की अद्भुत बात सुनकर सेठ लक्ष्मीदल ने प्यार भरे शब्दों में श्रीचन्द्र से कहा- "बेटा बारह प्रहर में तिलकपुर तक जाकर कैसे लौट आये हो" ज्यों ही कुमार अपनी यात्रा के वृत्तान्त को सुनाने लगा उसकी माता सेठानी लक्ष्मीवती भी सुनने की इच्छा से वहां आगई । कुमार कहने लगा-"पिताजी ! आपकी कृपा से, गुरुदेव के आशीर्वाद से, और पूर्व पुण्यों के प्रभाव से ही मैं ऐसा करने में समर्थ हो सका हूँ। दूसरी
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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