SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (११७) धावेध मंडप की और चला । चारों ओर लोगों के झुड के मुड खडे राधावेध की साधना के सम्बन्ध में तरह २ की बातें कर रहे थे । स्थान २ पर आश्चर्यकारी दृश्यों को देखता हुआ वह समित्र स्वयंवर मण्डप में प्रविष्ट हुआ। योग्य सिंहासनों पर देवताओं की शोभा को हरने वाले राजा लोग बिराजमान थे । बीचमें राधावेध स्तम्भ खडा था। उस पर शास्त्र सम्मत उल्टे सीधे आठ २ चक्र चक्कर काटते थे। उनके बीच में एक मछली लगी हुई थी जिसकी बांयी आंख का तारा राधा कही जाती है। खंभ के पास ही तेल से भरा कडाह रखा था। उसमें घुमते चक्रों के बीच रही राधा का प्रतिबिंब पड रहा था । उस खम्भे के पास धनुष बाण रखे हुए थे । कडाह में नीचे परछाँई को देखता हुआ उल्टे सीधं चक्रों के बीच की राधा को बाणसे वींधने वाला वीर राधावेध को सिद्ध करनेवाला माना जाता है। श्रीचन्द्र कुमार ने अपने मित्र को ये सारी बातें समझा कर उचित स्थान पर बैठ गया। इतने में वहां बाजे बजने लगे । चलो, हटो की अवाजें आने लगी। सब एक तरफ हो गये । सुन्दर वैवाहिक वेश पहिने परिवार के साथ राजकन्या पालकी में बैठ कर सभा मण्डप में आई । पालकी से अभ्रान्त भाव
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy