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________________ ( ११५ ) इस प्रकार उनमें परस्पर विनोद वार्तालाप हो रहा या कि अचानक उनके कानों में बाजों को आवाज सुनाई दी । चतुरंगिणी सेना मंत्रियों और सामंतों के साथ जय आदि राजकुमारों को नगर से बाहर जाते देखा । श्रीचन्द्रगुणचन्द्र से से पूछा कि मित्र ! कहो यह किस बात का जलूस है ? गुणचन्द्र को इस बात का पहिले से पता था अतः उसने मित्र के प्रश्नका उत्तर विस्तार पूर्वक देना प्रारंभ किया । वह बोला ने मित्र ! यहां से दक्षिण की ओर तिलकपुर नाम का एक नगर है। वहां तिलकसेन नाम का राजा राज्य करता है। उसके सुतिलका नाम की पटराणी है । उस महारानी के तिलकमंजरी नाम की कन्या है जो स्त्रियों की चौसठकलाओं में प्रवीण हैं । इस समय वह पूर्ण तरुण अवस्थामें होने से पाणिग्रहण के योग्य हो गई है। एक समय राज सभा में अपनी प्रतिज्ञा प्रकाशित की थी कि जो कोई वीर राधा - वेध करने में समर्थ होगा वही मेरा स्वामी होगा । राजा तिलकसेन ने उसे विवाह योग्य समझ कर स्वयंवर का शुभ मुहूर्त्त निश्चय कर लिया है। राधावेव के आचार्य की देख रेख में शास्त्र की विधि से राधावेध
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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