SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इस सारिकाने किसी ज्ञानी गुरु से यह सुन रखा है कि तू राजकुमारी होगी, बस तवं से ज्ञानी भगवान की वाणी पर श्रद्धा रखती हुई तीव्र तपस्या कर रही है महारानी जी के मना करने पर भी परम श्रद्धा से इसने आठ दिन के व्रत किये हैं। उसीका उद्यापन-निर्वाण समारोह कर के रानीजी ने अपने जन्म को सफल माना है । इस प्रकार कह कर सैन्द्री रुक गई । सैन्द्री की बात सुन कर श्रीचन्द्र-कुमार सारिका की प्रशंसा करते हुए बोला-अहो, इसकी शक्ति-निर्मल श्रद्धावैराग्य और भाग्य सभी प्रशंसनीय हैं । तिर्यंच योनी में रहते हुए भी शुभ कर्मों का उदय होने से इसने धर्म की कितनी सुन्दर अराधना प्राप्त की है । कुमार भी मन्दिर में पहुँचा। भगवान को भावपूर्वक नमस्कार किया । सारिका की क्रियाओं को कौतुक भरी दृष्टि से देखता हुआ वह वहीं पर ठहर गया । सारिका ने चोंचसे विधिवत् जल चंदन पुष्प आदि चढा कर भगवान को अष्ट प्रकारी पूजा की। स्तुति स्तोत्र और चैत्य-चन्दन करके भाव पूजा भी संपन्न की। बाद ज्यों ही मन्दिर में से रवाना होने के लिये वह घूमी त्यों ही अचानक उस की दृष्टि उस दिव्य कुमार पर पड़ी । सुन्दर स्वरूपवाले उस
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy