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________________ ( ८८.) खेलता हुआ श्रीचन्द्रकुमार धोरे धीरे चलने के लिये भी कदम उठाने लगा बन्धुजन उसको एक के बादएक गोदी में लेते हुए नहीं अघाते थे। जिसके पास वह जाता था, उसी के सुख का कारण वह बन जाता था उसने कभी किसी वस्तु के लिये न हठ किया, न मुह ही बिगाडा । सदा प्रसन्न रहने वाला वह कुमार जब पांच-वर्ष का हुआ तब उसमें बल-बुद्धि और तेजो-लक्ष्मी का संचार अपने आप होने लगा । एक बार सुना, देखा, ज्ञान-विज्ञान पहले अभ्यास की हुई विद्या के जैसे आसानी से ही उसे आ जाता था । .. एक समय श्रीचन्द्रकुमार कौतुक देखने की इच्छा से अपने पिता के साथ रथ पर सवार हो उद्यान की ओर चला । फल फूलों से लदे हुए हरे भरे पेड़ों को संगमरमर से बने हौज, बावड़ियों को देखता हुआ वह घूम रहा था इतने में ही वह क्या देखता है-बाजे बज रहे हैं। खुले हाथों दान दिया जा रहा है। नाटक हो रहे हैं। हटो हटो की अवाज लगाते हुए छड़ीदार प्रजाजनों को हटाकर सडक साफ कर रहे थे। सबके आगे हाथी पर राष्ट्रध्वज फहरा रहा था। उसके पीछे कई तरह के बाजे बजाने बालों की टोलियां चल रही थी। सजे सजाये कोतल घोडे चलते थे। घुड सवार अमीर उमराव सामंत मन्त्री अपनी २
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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