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________________ बारहवा प्रकरणा । स्वात्मिक आशा दी गई। इतनाही नहीं बल्कि उस आशा रूपी नगरी: के किल्लेभूत उत्तम सूरिमंत्र भी अर्पण किया गया । अब महिलपुर पाटण से विहार करके सूरिजी भीसंकेश्वरः जी पधारे। यहां पर भीसंगेश्वरजी पाश्र्वनाथ की यात्रा की और नयविजय नामक मुनि को लुंपाकमत स्याग करा कर गुरु शिष्य का आभयण करते हुए उपाध्याय पद अर्पण किया । इस समय अनेक घोड़े - हाथी-उंट पैदल वगैरह आईवर के साथ मार घाड देश से महान् संघपति हेमराज, भीसंघकी साथ में शत्रुञ्जय तीर्थ की यात्रा को जाते हुए भीसंखेश्वर में आकर बड़े उत्सव के साथ मुनीश्वरों का दर्शन करने को थोड़े रोज ठहर गए । यहां से विहार करके प्रामानुब्राम बिचरते हुए, भव्य प्राणियों को वीर परमात्मा की वाणी का लाभ देते हुए सुरीश्वरजी अहमदा बाद पधारे । बारहवा प्रकरण । ( अनेक प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा । तेजपाल नामक श्रावक का बडा भारी संघ निकालना । रामसैन्य तीर्थ की यात्रा । मेघराज मुनिका कामत त्याग करना । तीर्थाधिराजकी यात्रा और श्रीविजयदेवसूरिजी का पृथक् विचरना इत्यादि ) अहमदाबाद के भावकों ने श्रीसूरीश्वरजी की वाणीले अपूर्व लाभ उठाया। इधर प्रतिष्ठा पर प्रतिष्ठा होने लगी । एक पुण्यपा ल नामक श्रावक ने ५१ अंगुल प्रमाण की श्रीशीतलनाथ स्वामी की प्रतिमा की, तथा उनके भाइ ठाकर ने ७५ अंगुल प्रमाण की
SR No.022726
Book TitleVijay Prashasti Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay Muni, Harshchandra Bhurabhai
PublisherJain Shasan
Publication Year1912
Total Pages90
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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