SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ग्यारहवा प्रकरण । खंभात में आपने गंभीर वाणी से देशना देनी भारम्भ की । इस देशना में मुख्य विषय भगवत्प्रतिष्ठा-तीर्थ यात्रा-और बड़े बड़े उत्सों से शासन प्रभावना' आदि रकने थे। सूरीश्वर के उपदेश से प्रति श्रद्धावान्-धनवान्-बुद्धिमान् श्रीमल्ल' नामक भावक के मनमें यह विचार हुआ कि 'लक्ष्मलिता का यही फल है कि यह सुकृत में लगाई जाय । क्योंकि जिस समय इस संसार से हम चले जायेंगे, उस समय खाली हाथही जायेंगे। न तो भाकाम आवेगा, न पिता, न माता और न लक्ष्मी । लक्ष्मी वही सार्थक है जो इस हाथ से धर्म कार्यों में लगाई जायगी' बस ! यही विचार करके 'श्रीमल्ल' ने प्राचार्य पदवीका महोत्सव करना निश्चय किया। - गुजरात-मारवाड़-मालवा आदि देशो में कुंकुम पत्रिकाएं भेजवा दी गई। इस महोत्सव के ऊपर अनेक देश के श्रावक इकडे होने से यह नगर पञ्चरंगी पाघ से सुशोभित होने लगा। श्रीमल्ल भावक ने महोत्सव मारंभ किया। अपने यहां पर एक सुन्दर मण्डप की रचना की । शहर के समस्त राजमार्ग साफ करवाए । सुगन्धित जल से नगर में छिड़काव हो गया। घर घर में नए तोरण बांधे गए । घरकी दिवाले रंग बिरंग से सुः शोभित की गइ । वृक्षों के ऊपर ध्वजा-पताकाएं लजाइ गई । देव-मन्दिर भी अत्युत्तम रीति से सजाए गए । देखते ही देखते में सम्पूर्ण नगर अमरापुरी की उपमा लायक बन गया। : आचार्य पदवी के दिन 'भीमल्ल ' शेठ अपने भ्रातृपुत्र शोभचन्द को साथ में लेकर, पञ्चवर्ण के वस्त्र धारण करके अनेक प्र. कार के आभूषणो से अलंकृत होकर श्रीसूरिजीके पास आए और इस तरह प्रार्थना करने लगेः- .
SR No.022726
Book TitleVijay Prashasti Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay Muni, Harshchandra Bhurabhai
PublisherJain Shasan
Publication Year1912
Total Pages90
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy