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________________ ग्यारहवा प्रकरण। स्मरण करने से अपत्य रहित पुरुष भी अद्भुत पुत्र की प्राप्ति क. रता है-ऐसे पार्श्वनाथ प्रभु रक्षा करो। . "जिसका नाम स्मरण करने वाला पुरुष भनेक प्रकार के घोड़े। हाथी रथ-पदाति प्रादि पदार्थ युक्त राज्य को प्राप्त करता है-ऐसे पार्श्वनाथ प्रभु रक्षा करो। . " जिसका नाम स्मरण करने से मंत्र-तंत्रादि की विधिपं भी सिद्ध होती है-ऐसे पार्श्वनाथ प्रभु रक्षा करो"। . " जिसका नाम स्मरण करने के प्रसाध्य विद्याएं भी साध्य होसकती है-ऐसे प्रभु रक्षा करो"। "जिसके नाम स्मरण से, अनेक तपस्या से प्राप्त होने वाली, अष्टसिद्धि प्राप्त होती है-ऐसे पार्श्वनाथ प्रभु रक्षा करो"। . "जिसके 'मो-ही-भी-अहं श्रीचिंतामणिपार्श्वनाथाय नमः इस प्रकार के मंत्र से सारा जगत् पश होजाता है-ऐसे पार्श्वनाथ प्रभु रण जगत् की रक्षा करो"। इस्लादि प्रकार से स्वच्छ और निर्मल हृदय पूर्वक श्रीपार्श्वनाथ प्रभु की स्तषना करके इस प्रभु का नाम सूरीश्वर ने 'श्रीचिंतामणि पार्श्वनाथ' स्थापन किया । श्रीसंघ के भाग्रह से सूरिजी ने चातुर्मास सिकंदरपुर में ही किया। इस सिकन्दरपुर में एक लहुश्रा' नामक सुश्रावक रहता था, जो बड़ा बुद्धिमान और धनाढ्य था। इस महानुभाव ने अपने द्रव्य से भीशान्तिनाथ प्रभु का एक बिंब बनवाया और उत्सव के साथ भीसूरीश्वर के हाथ से प्रतिष्टा करवा । इस प्रतिष्ठा के स. 'मय भीनन्दिविजय मुनीश्वर को " वाचक" पद दिया गया और 'विद्याषिजयमुनि जी को “ पण्डित " पद । अब सूरिजी की
SR No.022726
Book TitleVijay Prashasti Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay Muni, Harshchandra Bhurabhai
PublisherJain Shasan
Publication Year1912
Total Pages90
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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