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________________ • दशवा प्रकरण। दशवांप्रकरण। (श्रीहीरविजयसूरिजी की सिद्धगिरि की यात्रा, वहाँ से आकर . उन्नतनगर में दो चातुर्मास करना, विजयसेनसूरि का . पट्टन आना, हीरविजयसूरि का स्वर्गमन और .. ... . श्रीविजयसेनसूरि का विलाप ।) इधर जब भीविजयसेनसूरि लाहोर में विराजते थे, उस समय में श्रीहीरविजयसूरि पाटन में चातुर्मास करके सकल दुःखों को ध्वंस करने वाली श्रीशचंजयतीर्थ की यात्रा करने को उत्सुक हुए । चातुर्मास समाप्त होने पर बहुत साधु के समुदायसे वेष्टित श्रीसूरीश्वर सिद्धगिरी ( शबंजय ) पधारे । इस समय में सूरिजीके साथ बहुत देशों के श्रीसंघ भी आएथे, जिन्हों ने नानाप्रकार के द्रव्यों से शासन की प्रभावनायें की और देवगुरुभक्ति में सदा तत्पर रहे। । तीर्थाधिराज की यात्रा करने के समय पहिले पहल त्रिलोक के नाथ श्रीऋषभदेव भगवान को तीन प्रदक्षिणा देते हुए आपने मनवचन और काया से स्तुति की। यात्रा करने को आए हुए संघ ने भी अतुच्छ द्रव्य से पूजा प्रभावना करके पुण्य उपार्जन कर लिया। यहां पर थोड़े ही रोज रह करके भीसूरीश्वर ने यहां से अन्य स्थान को विहार किया। ___ उन्नतपुरी के श्रीसंघ के आग्रह से आपका उन्नतपुरी में प्राना हुआ । इस नगर में धर्म का लाभ अधिक समझ कर आपने चातु. मांस भी यहां ही किया । खेद का विषय इस समय यह हुआ कि यहां पर आपके शरीर में किसी असाध्य रोगने प्रवेश किया और इससे आपको यहां पर चातुर्मास भी करना पड़ा।
SR No.022726
Book TitleVijay Prashasti Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay Muni, Harshchandra Bhurabhai
PublisherJain Shasan
Publication Year1912
Total Pages90
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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