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________________ ४ . विजयप्रशस्तिसार । सं 'भस्म नामका दुग्रह उतरा है ? । इस समय में राजा ने अनेक याचकों को दान दिये । और गीत-वादित्र की भी सीमा नहीं रक्सी। कुछ काल 'फतेपुर में ही रह करके वहां से विहारं कर सूंरीश्वर आगरा पधारे । आगरा बादशाह की राज्यधांनी थी। चा. तुर्मास आपने पाने में ही किया । अकबर बादशाहने अपनी सभा में इन शब्दों में सूरीश्वर की प्रशंसा की कि “धर्मकर्तव्य रूप क्रिया में मोर सत्य भाषण करने में तत्पर ऐसे किसी अन्य मुनि को मैने आज तक नहीं देखा है " आने में रहे हुए गुरु महाराज की अद्भुत महिमा को सुन करके राजा अतीव हर्षित हुमा । उ-. सने पर्युषणा पर्व के दिवसों में अपने राज्य में डुग्गी पिटवाकर यह आशा प्रचारित करा दी कि प्रजा का कोई मनुष्य जीव हिंसा ने करे। चातुर्मास समाप्त होनेपर कुशावर्त देशमें पधारकर 'शौर्यपुर' नगर में श्रीसूरिजी नेमीश्वर की यात्रा करने को चले । यात्रा करके पुनः मागरे में पधारे। यहां पर आपने श्री चिंतामणिपार्श्वनाथ की प्रतिष्ठा की। तदन्तर यहां से बिहार करके पुनः फतेपुर (सिकरी) पधारे। जहां कि अकबर बादशाह रहता था। गुरू महाराज का अपने नगर में भागमन सुन करके बादशाह अकबर बड़ा हर्षित हुआ और उसने मिलने की अभिलाषा प्रगट की । सूरीश्वर भी पुनः राजाको धर्मोपदेश देने को उत्सुक हुए । जप राजाने सूरीश्वर को बुलाने के लिये प्रादमी भेजे नब सामान्य मुनियों को उपाश्रय में ही रख करके केवल सात विद्वानों को साथ में लेकर मुनिराज राज दरबार में पधारे । इस समय सूरीश्वर ने बहुत प्रसन्न होकर राजा को उपदेश दिया । इस उपदेश का यहां
SR No.022726
Book TitleVijay Prashasti Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay Muni, Harshchandra Bhurabhai
PublisherJain Shasan
Publication Year1912
Total Pages90
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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