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________________ अहम समर्पण परोपकार परायण, धर्मधुरंधर, शासन रक्षक, पूज्यपाद मातः स्मरणीय, श्रीगुरु वर्य समीपेषु ! गुरु देव! परमात्मा वीरके शासनकी उन्नति के लिये, जैन साहित्य के प्रचारके लिये, आप श्रीमान् का अविश्रान्त उद्योग और प्रशंसनीय प्रयत्न सर्वसाधारण पर विदित है किसी से छिपा नहींहै । 'सवी जीव करंशासनरसी' इसलो. कोक्तिको आपने चरितार्थ ही कर दिया है। इतना ही नहीं ? मेरे जैसे पामरों के उद्धारके लिये जिस २ भांति से-जिस २ प्रकार से आपश्रीने अनुग्रह कियाहै, वह सर्वया अनिर्वचनीय है। इन उपकारों से अनुगृहीत होता हुआ इस छोटीसी पुस्तक को आप की सेवा में आदर पूर्वक समर्पण करता हूँ। सब प्रकार से आपका विद्याविजय
SR No.022726
Book TitleVijay Prashasti Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay Muni, Harshchandra Bhurabhai
PublisherJain Shasan
Publication Year1912
Total Pages90
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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