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________________ सोचने लगा - अहो! क्या यह वास्तविक है? इस कुमार को धन्य है, जिसका देव भी सान्निध्य कर रहा है। इतने में ही यक्ष अदृश्य हो गया। __ कुमार जाग गया और पुनः दोनों ने आगे प्रयाण किया। सुमित्र ने तीन दिनों तक कुमार को फल खाने से रोका। वे महाशाल नगर के उपवन में पहुँचे। वहाँ पर सुमित्र ने कुमार को नीलमणि देकर कहा - मित्र! इस मणिरत्न की पूजा करो, जिससे तुम महाराज बनोगे। यह सुनकर कुमार विस्मित हुआ और पूछा - मित्र! तूने इसे कहाँ से प्राप्त किया है? सुमित्र ने कहा - तुम्हारे पुण्य से। शेष वृत्तांत राज्य की प्राप्ति के बाद कहूँगा। कुमार ने भी नीलमणि की पूजा की और अब राज्य की प्राप्ति कैसे होगी? इस प्रकार विचार करते हुए आम्रवृक्ष के नीचे बैठा। सुमित्र लतामंडप में जाकर, पुष्प आदि से चिंतामणि की पूजाकर, देह उपयोगी साधन-सामग्री की माँग की। तत्क्षण ही मणि के प्रभाव से दैविक अंगमर्दकोने, उन दोनों का तैल से अंगमर्दन किया। सुगंधि द्रव्यों से विलेपन किया! स्वर्ण आसन पर स्नानकर, दिव्यवस्त्र, पुष्प, अलंकार आदि धारण किएँ। स्वर्णपात्रों में खान-पानकर, महामूल्य तांबूल का आस्वादन लिया। माया-जाल के समान, उपभोग करने के बाद सर्व सामग्री अदृश्य हो गयी। कुमार ने पूछा - मित्र! क्या यह नीलमणि का प्रभाव है? सुमित्र ने कहा - मित्र! ऐसा मत कहो। समय आने पर, मैं सब कुछ बता दूंगा। पश्चात् वे दोनों सुखपूर्वक वार्तालाप करने लगें। इधर अकस्मात् ही समीप के नगर में अपुत्रीय राजा का स्वर्गवास हो गया। पाँच दिव्यों के साथ मंत्री आदि उस उपवन में पहुँचे। तब गर्जना करते हाथी ने कलश-जल से कुमार का अभिषेककर अपनी पीठ पर बिठाया। कुमार चारों ओर से छत्र-चामर से शोभित होने लगा। स्तुतिपाठक कुमार का जयघोष करने लगे। मंत्रियोंने नमस्कारकर नगर में प्रवेश करने की विज्ञप्ति की। तब सुमित्र सोचने लगा - मेरे मित्र ने विस्तृत राज्य प्राप्त किया है। अब मैं स्वेच्छा से, गुप्तरीति से यहाँ से निकलकर नगर के अंदर पर्यटन करता हूँ। सुमित्र को नही देखने से, कुमार आकुलित हुआ। मंत्री ने पूछा - देव! आप शोकग्रस्त क्यों है? क्या सोच रहे है? किसकी अपेक्षा है? हम क्या लाएँ। राजा ने कहा - मेरा मित्र यही पर था, किंतु अब दिखायी नही दे रहा है। इसलिए शीघ्र ही तुम उसे ले आओ। सुभटों में चारों ओर तलाश की, किंतु कही पर दिखायी नही दिया। मंत्री आदि ने राजा से आग्रहकर, नगर में प्रवेश कराया। उनके आग्रह से, रत्नशिख राजा ने पूर्वराजा की आठ कन्याओं के साथ विवाह किया। उनके साथ विलास करते हुए, राज्य का परिपालन करने लगा। परंतु क्षणमात्र के लिए भी हृदय से अपने मित्र को नहीं भूलता था। 55
SR No.022710
Book TitlePruthvichandra Gunsagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaivatchandravijay
PublisherPadmashree Marketing
Publication Year
Total Pages136
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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