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________________ ने देखा और कुलपति के सामने ले गया। कुलपति के द्वारा पूछने पर कलावती ने अपना वृत्तान्त कह सुनाया। धीरज धारणकर उसने रोती कलावती को आश्वासन दिया और कहा-भद्रे! तुम तापसी के आश्रम में रहकर अपने पुत्र का पालन करो। अतिशीघ्र ही तेरा कल्याण होगा। कुलपति के वचन से, कलावती भी वहाँ रुक गयी। इधर उन चांडाल की स्त्रियों ने एकांत में, राजा के सामने कडे सहित काटे हुए उन दोनों भुजाओं को लाकर रख दिये। जयसेनकुमार नाम से अंकित उन दोनों कड़ों को देखकर राजा सोचने लगा-हा! बिन विचारे मैं पाप कर बैठा। उस बात की प्रतीति के लिए संशय से युक्त राजा बार-बार दत्त से पूछता। जब कोई देवशालनगर से आता, वह भी यही कहता था। विजय राजा के विश्वसनीय पुरुष मेरे घर में रहे हुए हैं और कलावती देवी से मिलने के लिए यहाँ आये हैं। तब शंखराजा ने भी उन्हें बुलाकर पूछने लगा-लोगों! तुम जवाब दो कि इन दोनों कड़ों को किसने भेजा है? हर्ष से वे भी जयसेनकुमार का नाम लेने लगे। इस प्रकार उनके इस वचन को सुनकर मूर्छा के आवेश से राजा शीघ्र ही भूमि पर गिर गया। जैसे-तैसे कर होश में आया और हृदय में सोचने लगा-मैंने खराब कार्य किया है। अहो! मेरी निर्दयता! अहो! मेरी कर्म चांडालता! इस प्रकार सोचते हुए पुनः मूर्च्छित हो गया। मंत्री आदि सभाजनों के पूछने पर आँसु बहाते हुए शंखराजा कहने लगा-ओहो! मैं लूंटा गया हूँ। मैं दुष्ट हूँ। मेरा मुख देखने लायक भी नहीं है। मेरा चरित्र अपवित्र है। कुल की लज्जा का विचार न कर, जरा भी दोष रहित इस कलावती को मुझ पापी ने यमराज के घर पहुंचा दिया है। इसलिए पाप से भारी बना मैं, अपना मुख कैसे दिखलाऊँ? इस स्त्रीघात के पाप से मुझे नरक में भी स्थान नहीं मिलेगा। अब काष्ठों को शीघ्र ही तैयार करो, जिससे की अग्निप्रवेश के द्वारा अत्यन्त शोक से संतप्त मैं शीघ्र ही शोक को नष्ट कर दूँ। ___ वज्रपात के समान, राजा के उस वचन को सुनकर मंत्री आदि सभालोग कहने लगे-स्वामी! आप घाव के ऊपर नमक छिड़कने के समान कार्य मत करो! पहले भी एक अयोग्य कार्य हो चूका है। अगर आप दूसरा अयोग्य कार्य करेंगे तो पृथ्वी आज ही अनाथ बन जायेगी। चिर समय तक राज्य का परिपालन कर, अत्यन्त क्रूर शत्रुओं का संहार करे। अगर आप अब राज्य छोड़ देंगे, तो राज्य की व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जायेगी। आपके कुल का क्षयकर, आप अपने शत्रुओं के मनोरथों को सफल न करें। हे देव! करुणा सागर! इसलिए आप शीघ्र ही हमारे ऊपर प्रसन्न बने। मत्त हाथी जिस प्रकार अंकुश की अवगणना करता है, वैसे ही राजा भी मंत्रियों के वचनों की अवगणना कर, अग्नि में प्रवेश करने की इच्छा से, शंख राजा उद्यान जाने की तैयारी करने लगा। इतने में ही युक्ति करने में निपुण,
SR No.022710
Book TitlePruthvichandra Gunsagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaivatchandravijay
PublisherPadmashree Marketing
Publication Year
Total Pages136
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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