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________________ गिर पडा। अहो! आपदाओं में, पूर्वभव के उपार्जित पुण्य ही रक्षा करतें हैं। पहले भी जिनप्रिय पर मोहन का मात्सर्य था । उसी अभ्यास से सुमित्र का तुझ पर द्वेष था। गुणन्धर ने नमस्कार कर मुनिराज से पूछा - प्रभु ! वह सुमित्र अब मरकर कहाँ पर उत्पन्न हुआ है? मुनिभगवंत ने कहा - अयोध्या नगरी में वह ब्राह्मण का पुत्र हुआ है। उसका नाम केशव है। वह जन्म से अंध तथा दुःखी है । भव से उद्विग्न बनकर गुणन्धर ने उन मुनि के समीप में दीक्षा ग्रहण की। शास्त्रों का अध्ययन कर आगम धारकों में श्रेष्ठ बना है। वह गुणन्धर मैं ही हूँ और तुझे प्रतिबोधित करने के लिए विहार करते हुए यहाँ पर आया हूँ। यही केशव ब्राह्मण का चरित्र है। वीरांगद राजा भी सातवें स्वर्ग से च्यवकर, इस नगर का पुरुषोत्तम राजा बना है। इस प्रकार मुनिराज के वचन सुनकर पुरुषोत्तम राजा संविग्न बना । विषयों से उद्विग्न बनते हुए संयम लक्ष्मी की प्रार्थना करने लगा। मुनि के वचन से बोधि प्राप्तकर, कपिञ्जल ने हाथ जोडकर कहा - प्रभु! मुझे भी प्राणियों के हित करनेवाली ऐसी दीक्षा दे । पुनः पुरुषोत्तम राजा ने मुनि से पूछा भगवन्! कपिञ्जल ने पूर्वभव में क्या आचरण किया था? गुरु ने कहा यह वसंतपुर में ब्रह्मचर्य अणुव्रतधारक शिवदेव नामक श्रावक था । व्युद्ग्राहित मोह से मुनियों पर मात्सर्य धारण करता था। आयुष्य पूर्ण कर किल्बिषिक हुआ। बाद में चंडालों की जाति में उत्पन्न हुआ। वहाँ से धूमप्रभापृथ्वी में नारक हुआ। नरक से निकलकर यह कपिञ्जल हुआ है। इसलिए केशव पर इसकी प्रीति है। केशव के वचन से कुलक्रम से प्राप्त धर्म को छोडकर, इसने चार्वाकमत का आश्रय लिया है। यहाँ पर कुसंग ही हानि करनेवाला है। सरल ऐसा कपिञ्जल खुद की जाति का स्मरण कर प्रतिबोधित हुआ । केशव चिर समय तक भयंकर संसार समुद्र में भ्रमण करेगा। इस प्रकार चरित्र -सुनकर, पुरुषोत्तम राजा ने कपिञ्जल आदि बहुतों के साथ दीक्षा ग्रहण की। - - कनकध्वज राजा भी उनके चरित्र देखकर तथा सुनकर संविग्न बना । अपने राज्य पर पुरुषचंद्र पुत्र का अभिषेक कर, जयसुंदर के साथ दीक्षा ग्रहण की। और निरतिचार चारित्र का चिर समय तक परिपालन किया। आयुष्य पूर्ण कर, विजय विमान में वे दोनों बत्तीस सागरोपम प्रमाण आयुष्यवाले देव हुए। वहाँ पर रोष रहित तथा अहं इन्द्रता के सुख से दोनों समय बीतानें लगे। इस प्रकार पं. श्रीसत्यराजगणि द्वारा विरचित श्रीपृथ्वीचंद्रमहाराजर्षि के चरित्र में कनकध्वजराजर्षि का चरित्र रूपी नवम भव वर्णन संपूर्ण हुआ । दशम भव अंग देश में चंपा नगरी है। वहाँ पर जय नामक राजा राज्य करता था । 117
SR No.022710
Book TitlePruthvichandra Gunsagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaivatchandravijay
PublisherPadmashree Marketing
Publication Year
Total Pages136
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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