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________________ ने सहायता के रूप में पराक्रमशाली श्रीबल की याचना की। श्रीबल ने भी उसकी बात स्वीकार कर ली। रात्रि के समय श्रीबल, भूतों के इष्ट ऐसे प्रेतवन (श्मशान) में पहुँचा। उसी समय श्रीगुप्त का अपहरण करते एक अत्यंत भयंकर पिंशाच को देखा। तलवार निकालकर श्रीबल उसका पीछा करते हुए एक विशाल अटवी में पहुँचा। प्रातः हो जाने से पिशाच अदृश्य हो गया था, किंतु श्रीगुप्त दिखायी नही दिया। दुःखित होते हुए श्रीबल उसकी इधर-उधर अन्वेषणा करने लगा। इतने में ही वहाँ पर, किसी रोती कन्या को गले में फांसा डालते हुए देखा। श्रीबल आश्चर्यचकित हुआ और सावधानीपूर्वक छुपकर देखने लगा। तब इस प्रकार कन्या की वाणी सुनायी दी - लोकपाल आदि सुनें। यदि इस जन्म में श्रीबल मेरा पति नही हुआ है, तो अन्य जन्म में वह मेरा पति हो। ऐसा कहकर, कन्या ने खुद को फांसे से लटका दिया। श्रीबल ने तलवार से उस फांसे को काट दिया। कन्या ने सहजतापूर्वक श्रीबल को पहचान लिया और आनंदित हुई। लज्जा से अपने सिर को झुकाकर, वह इस प्रकार अपने संपूर्ण वृत्तांत को श्रीबल से निवेदन करने लगी - ___ मैं पभखंडपुर के महसेन राजा की सुलक्ष्मणा पुत्री हूँ। पिता ने मेरा विवाह श्रीबल के साथ निश्चय किया था। एकदिन जब मैं उद्यान में खेल रही थी, तब किसी पापी विद्याधर ने मेरा अपहरण कर लिया था। मुझ रोती अबला को इस महावन में छोडकर, वह विद्याधर अपराजिता विद्या की सिद्धि में प्रयत्नशील है। मैंने मृत्यु का निश्चय किया और अवसर प्राप्तकर यहाँ आयी हूँ। जब वे दोनों इस प्रकार परस्पर आलाप कर रहे थे, तब उनकी धारणा बिना ही श्रीगुप्त सिद्धपुत्र भी वहाँ पर आ गया। उसे देखकर श्रीबल ने पूछा - सिद्ध! क्रोधित पिशाच से कैसे छूटे हो? श्रीगुप्त ने कहा - मित्र! इसने माया से तुझे व्यामोहित कर दिया था। मैं सिद्धविद्यावाला होते हुए भी, तेरे वियोग से दुःखी बना। तेरे सत्त्व से प्रसन्न होकर, पिशाच ने तुझे इस कन्या के समीप छोडा है। इसलिए तुम विलंब मत करो। शीघ्र ही गांधर्वविवाह से इसके साथ पाणिग्रहण करो। श्रीबल ने भी वैसा ही किया। पश्चात् विद्या की सहायता से, वे सभी पांडुपुर पहुँचे। राजा ने यह संपूर्ण वृत्तांत पभखंडपुर के महसेन राजा को ज्ञापन कराया। महसेन राजा भी उस चरित्र को सुनकर आनंदित हुआ। अपने मंत्रियों को भेजकर, सुलक्ष्मणा का पाणिग्रहण महोत्सव कराया। __इधर पिता की आज्ञा लेकर, बलवान् शतबल अपने भाई श्रीबल की खोज में निकल पडा। बीच में तापस आश्रम आया। वहाँ पर रो रही तापसियों को देखकर, शतबल ने कारण पूछा। उन्होंने कहा - इस प्रदेश में असमंजस की स्थिति उत्पन्न हुई है। यह देखकर हम सब दया से शोकातुर बनी है। यहाँ पर 107
SR No.022710
Book TitlePruthvichandra Gunsagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaivatchandravijay
PublisherPadmashree Marketing
Publication Year
Total Pages136
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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