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________________ (२१४) 1 'वंदामि साहम्मियं' ति । तओ तीए भणियं भणियाए लक्खिओ चेय अम्हेहिं जहा तुम सम्मत्तं-सावओ त्ति । किं कारणं । जेण केवलि-जिणधम्म-साह3 संजम-सम्मत्त-णाणाई किरिया-कलावेसु णामेण वि घेप्पमाणेसु सरय-समय राई-सयल-ससंक-लंछण-दोसिणा-पूर-पसर-पवाह-पव्वलणा-वियसियं पिव 5 चंदुज्जयं तुह मुहयंद ति । एत्थंतरम्मि सूरो पसढिल-कर-वलय-दिट्ठ-वलि-पलिओ। 7 अह जोव्वण-गलिओ इव परिणमिउं णवर आढत्तो ।। इमम्मि य वेले वट्टमाणे भणियं एणियाए ‘रायउत्त, अइक्कतो मज्झण्ह-समओ, 9 ता उट्टेस, पहाइउं वच्चामो त्ति समुट्ठिओ य रायतणओ । उवगया य तस्सासम पएसस्स दक्खिणं दिसा-भायं । थोयंतरेण दिट्ट एक्कम्मि ऊसिय-सिय-विंझ11 गिरि-सिहर-कुहरंतरालम्मि विमल-जलुक्कलिया-लहरि-सीयल-जलोज्झरं । __ तत्थ य तीर-तरुयरस्स हेतुओ संठिओ। संठियाणि मियाई वक्कलाई । 13 कुसुम-पुडयाई गहियाई । फलिहामलिणीय पडियाई सुक्कामलाई रुक्खाई __ सिलायलम्मि । उल्लियाई उत्तिमंगाई । मज्जिया जहिच्छं । परिहियाई कोमल15 धोय-धवल-वक्कल-दुऊलाई । गहियं च पउमिणी-पुडए जलं । तं च घेत्तूण चलिया उत्तरं दिसाभोयं । तत्थ य एक्कम्मि गिरि-कंदराभोए दिट्ठा भगवओ 17 पढम-तित्थ-पवत्तगस्स उसह-सामिस्स फलिह-रयणमई महापडिमा । तं च दह्ण णिब्भर-भत्ति-भरावणउत्तमंगेण ‘णमो भगवओ पढम-तित्थयरस्स' त्ति 19 भणमाणेण कओ कुमारेण पणामो । तओ ण्हाणिओ भगवं विमल-सलिलेण, आरोवियाइं जल-थलय-कुसुमाइं । तओ कय-पूया महाविहिणा थोऊण 21 पयत्ता । अवि य । जय पढम-पया-पत्थिव जय सयल-कला-कलाव-सत्थाह । 1) J तीय, P पणियाए for भणियाए. 2) Jom. जेण, J केवल. 3) P समत्त. 4) P सयलससिलंछणजोसिणा, P om. पवाह, P पवालणा. 5) P तुहयद ति. 6) P वलियलिओ. 9) Jom. य before रायतणओ. 10) P पएसस्स पच्छिमदक्खिणदिसा, Jएक for एक्कम्मि, P ऊससियं विंझ, J विंझइरि. 11) J जलुतरूक्किलयासलहलं सीअल. 12) J हेट्ठाओ, P संठिया निम्मियाइं. 13) P om. कुसुमपुडयाई, J फालिआमलिणीयलपडियाई. 14) J परिहिआ कोमल. 15) Jom. पउमिणी. 16) J वलिया for चलिया. 17) P om. पढम, J पवत्तयस्स उसभ, J फडिअ for फलिह, P om. रयण. 18) J भत्तिब्भरावणयुत्तमंगेण, P ॰वणपुत्तमंगेण. 19) J inter. पणामो and कुमारेण. 20) P थलकुसुमाई, J विहाणाई for महाविहिणा, P थुणिऊण for थोऊण. 22) J जय for सयल, P om. कला, P सत्थाहं.
SR No.022708
Book TitleKuvalaymala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraguptasuri
PublisherAnekant Prakashan Jain Religious Trust
Publication Year2011
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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