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________________ धन्य-चरित्र/71 अर्थात् विश्व पर उपकार करनेवाले सज्जन सूर्य की तरह एक जगह स्थिर नहीं रहते। धन्य के चले जाने के बाद कृषक ने विचार किया-"सत्पुरुष धन्यकुमार से प्राप्त यह विशाल निधि निःशंक होकर भोलूंगा, तो दूसरों के घरों को तोड़नेवाले अनेक प्रकार की बाते बनायेंगे। इस प्रकार परस्पर चर्चा द्वारा कदाचित् यह बात राजा के कानों तक चली जायेगी, तो कान का कच्चा राज चुगली द्वारा प्रेरित होकर मुझे कारागार में डालकर मेरा र्वस्व ग्रहण कर लेगा और मैं अति दुःखी हो जाऊँगा। अतः में सबसे पहले राजा को यथा-स्थिति सब कुछ बतलाकर फिर जैसा आदेश प्राप्त होगा, वैसा ही करूँगा। तब मुझे भविष्य-काल में सुख प्राप्त होगा।" ___इस प्रकार विचार करके कृषक ने जाकर राजा को यथास्थिति धन्य का सम्पूर्ण वृत्तान्त कहा। राजा ने भी विस्मित चित्त से कृषक द्वारा कथित धन्य-कथा को सुनकर उससे कहा-“हे कृषक! खेत से महा-निधान प्राप्त होना आश्चर्य नहीं है, क्योंकि पृथ्वी में तो पग-पग पर निधान है। लेकिन जो निधान को पाकर भी त्याग दे, वह बड़ा आश्चर्य है। उसी पुरुष से पृथ्वी रत्न–गर्भा है-यह उक्ति सत्य साबित होती है। तुम भी भाग्य-निधि हो, जो तुमने ऐसे पुरुष के दर्शन किये, भोजन कराया, उसके द्वारा दिया गया प्रसाद तुमने प्राप्त किया, अतः तुम भी धन्य हो। अगर उस पुरुष-सिंह ने वह निधान तुम्हे दे दिया, तो मैंने भी वह निधान तुमको दे दिया। महापुरुष का आदेश कौन नकार सकता है? लेकिन उस महापुरुष का नाम विख्यात हो, ऐसा कार्य करना।" । इस प्रकार राजा का आदेश प्राप्त कर किसान ने धन्य की ख्याति फैलाने के लिए उसी क्षेत्र-भूमि में धन्य नामक गाँव बसाया एवं राजा को निवेदन किया। राजा ने भी उस गाँव का आधिपत्य उसी किसान को समर्पित किया। कृषक भी राजा द्वारा प्रदत्त आधिपत्य पाकर सुख का अनुभव करता हुआ धन्य के उपकार को कभी नहीं भूला। धन्य भी आगे बढ़ता हुआ विविध नगरों, वनों आदि को देखता हुआ दिन व्यतीत होने पर किसी गाँव के समीप पहुँचा, जैसे ताप के व्यतीत होने पर हंस मानसरोवर को प्राप्त होता है। वहाँ संध्या में नदी के किनारे अनाकुल मन से बालुका को लेकर अपने हाथ से ऊँची-नीची करके समतल स्थान बनाकर निःशंक वृत्ति से रति तुल्य पलंग की तरह उस पर स्थित होकर अपने हृदय-कमल में सिद्धचक्र की स्थापना करके यथाक्रम अर्हत आदि पद का अपने मन में ध्यान करते हुए प्रहर भर जाप
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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