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________________ सुवर्ण धन्य - चरित्र / 62 - रत्न-वस्त्र आदि का भव्य जनोचित व्यापार किया गया, उसकी जगह लवण का व्यापार करते हुए पूर्व उपार्जित प्रतिष्ठा नष्ट हो जायेगी । येन-केनप्रकारेण बाल मूर्खादि की व्यापार क्रिया द्वारा घर का निर्वाह हो जाये, तो निपुणों को कौन पूछेगा ? गुणवानों की तो अवसर पर ही परीक्षा होती है। कभी काक-ताली - न्याय से मूर्ख का साहस - कार्य एक दो बार सफल हो जाये, तो भी हे तात! मन में हर्ष की उत्सुकता से उसी की ही प्रशंसा व प्रचार करना उचित नहीं है। शिष्ट- जनों के आचरित - व्यवहार काल में वही प्रचार जन-गर्हा को प्राप्त होता है। इसका द्रव्य तो शीघ्र ही देना होगा, वस्तु-विक्रय तो निर्लवण पृथ्वी ही होगी, तभी जानना । जैसे कि लोकोक्ति है कि लंका लूटने के समय निर्भागियों ने अपने हाथों द्वारा पीडा ही प्राप्त किया । अतः आप और आपका यह प्रिय पुत्र मिलकर विचार करें कि इस व्यापार में कितने परिमाण में लाभ होगा । " इस प्रकार धन्य की हँसी उड़ाये जाते हुए देखकर कुछ-कुछ आशंकित होकर धनसार ने धन्य को बुलाकर पूछा - " पुत्र जहाज में बहुत सारा माल होने पर भी तुम यह धूलि के पुंज - स्वरूप क्षार - मिट्टीवाली वस्तु क्यों लेकर आये हो?” पिता के कथन को सुनकर धन्य ने विनयपूर्वक अपने पिता से कहा -"हे तात! आपके चरण- प्रताप से दरिद्रता रूपी वन को जलानेवाली वस्तु हाथ में आयी है। सभी महा-इभ्य श्रेष्ठीयों ने तो इस वस्तु के प्रभाव से अनजान होने से इसे तुच्छ जानकर कपट - रचना करके मेरे सिर पर मढ़ दिया। मैने तो श्रीमद् गुरु-चरण- प्रभाव से इसे पहचानकर सहर्ष स्वीकार कर लिया । इस तुच्छ कही जानेवाली वस्तु का प्रभाव तो सुनिए - इस मिट्टी को सामान्य न समझें। इसके स्पर्श से लोहा स्वर्ण बन जाता है । पारस पत्थर की खान में रही हुई इस धूलि का नाम तेजमतूरी है। यह विश्व के दारिद्र्य का हरण करनेवाली है। इसकी रत्ती भर - मात्रा सूराख किये हुए आठ पल प्रमाण ताम्बे को सोना बना देती है - I इस प्रकार पिता के आगे निवेदन करने के बाद उसी समय धन्य ने उक्त क्रिया द्वारा ताम्बे और लोहे का स्वर्ण तैयार किया। माता-पिता तो अत्यन्त हर्षित हो गये। तीनों भाइयों को छोड़कर बाकी सभी परिजन प्रतिक्षण धन्य की प्रशंसा करने लगे। भाइयों का अन्तःकरण तो ईर्ष्या से और ज्यादा जलने लगा। तभी किसी व्यक्ति को धन्य का भाग्योदय सहन नहीं हुआ। उसने चुगली करते हुए राजा से निवेदन किया- "स्वामी ! धनसार का पुत्र धन्यकुमार सभी बड़े सेठों को तथा आपको भी ठगकर स्वल्प - मात्र मूल्य देकर तेजमतूरिका से भरे हुए कलशों को घर ले गया। किसी को भी उसने नहीं बताया । अतः वह
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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