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________________ धन्य-चरित्र/36 जिनकीर्ति सूरि द्वारा विरचित पद्यबन्ध श्री दान-कल्पद्रुम रूपी धन्यचरित्र-शाली का–महोपाध्याय श्री ज्ञानसागर गणि शिष्य की अल्प मति द्वारा गूंथा हुआ गद्य-रचना प्रबन्ध में भक्त-दान नामक प्रथम शाखा में स्वर्ण-लक्ष-उपार्जन नामक प्रथम पल्लव पूर्ण हुआ। द्वितीय-पल्लव तब पुत्रों ने वर्चस्वी-जनों की रीति द्वारा पिता को कहा-“हे तात! हमारे मन में कभी भी मात्सर्य की स्थिति नहीं रही, परन्तु किसी के भी द्वारा किया गया देवों का भी मिथ्या प्रशंसन हम क्षमा नहीं कर पाते, तो अन्य देहियों की मिथ्या-कथा सुनकर हम कैसे सहन कर सकते हैं? हे तात! आपके द्वारा बार-बार धन्य के गुणों का वर्णन किया जाता है, पर धन्य ने छल से लेख पढ़कर ठग की तरह छल-क्रिया करके लक्षधन उपार्जित किया। यह उपार्जन तो काकतालीय है, सर्व-कालिक नहीं है। व्यवहार-नीति से तो यथा-योग्य धन सर्वथा प्राप्त होता है। यह धन तो कादाचित्क होने से शिष्ट-जनों द्वारा प्रामाणिक नहीं है।" पुत्र के इस प्रकार के वचनों को सुनकर उन पुत्रों की प्रतीति के लिए पुनः धनसार ने चौंसठ-चौंसठ मासा स्वर्ण दिया। तब वे तीनों भी उस स्वर्ण को लेकर यथाक्रम से चतुष्पथ पर गये। वे सभी लक्ष्मी की समीहा से अपने-अपने कला-कौशल का विस्तार करते हुए भी अपने-अपने कर्मों के योग्य लाभ-हानि लेकर अपने घर आ गये। बत्तीस मासा सोने से भी कम अथवा उसके बराबर लाभ हुआ, पर धन्य की तुलना कोई भी नहीं कर पाया। दूसरे दिन पिता की आज्ञा से धन्य चौंसठ मासा स्वर्ण लेकर वाणिज्य रूपी आम्र-लता का सेवन करने लगा। कपूर, स्वर्ण, माणिक्य, वस्त्र आदि के व्यापारवाली दूकानों की वीथी पर जाते हुए अशुभ शगुन रूपी हवा द्वारा निषेध किये जाने पर वह वापस लौट आया। पुनः कुछ क्षण रुककर शगुन देखते हुए पशु-क्रयवाले चतुष्पथ पर उसे शुभ शकुन हुए। तब शकुनों को वंदन करके उसी चतुष्पथ पर व्यवसाय के लिए गया। वहाँ पर सद्गुणी, शास्त्र में कहे हुए लक्षणों से लक्षित एक मेंढ़े को देखा। मेंढ़े को शुभ लक्षणों से पूर्ण जानकर पाँच मासा सोने में उसे खरीदकर जब वह वापस आ रहा था, तो राजपुत्र लाख स्वर्ण हाथ में लेकर अपने मेंढ़े को आगे करके खड़ा था। मेंढ़े के युद्ध के रसिक अन्य भी अनेक व्यक्ति अपने-अपने
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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