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________________ धन्य-चरित्र/428 हार्द को समझ लेने से इन सभी पुद्गल विलासों को स्वप्न व इन्द्रजाल की तरह निष्फल मानता था। प्रायः आक्षेपक ज्ञानवालों के ऐसे ही चिह्न प्रति भासित होते हैं। इस जगत में जो पूर्व पुण्य के प्रबल उदय से अपरिमित धन और सम्पत्ति को प्राप्त करते हैं, वे उस में प्रमादपूर्वक लीन हो जाते हैं तथा उनके तुल्य अन्य धनवानों के विविध-चार्तुयादि अतिशय से परिकलित अभिनव भोगों को भोगते हुए देखकर वे भी उससे अधिक भोग की इच्छा करते हैं और विलास करते है, पर शक्ति के होने पर भी क्षमा के अनुकूल वर्तन तो कोई-कोई धन्य सदृश लोगों का ही होता है। जो कहा है ज्ञाने मौनं क्षमा शक्तौ त्यागे श्लाघाविपर्ययः । ज्ञान में मौन, शक्ति में क्षमा, त्याग में निंदा का अभाव आदि महा-कुशलानुबंधी पुण्यवानों में ही सम्भव होता है। चतुर्थ- महा आश्चर्य यह है कि सैकड़ों विकारों के हेतु होने पर भी अपने अद्वितीय धैर्य को नहीं छोड़ा। "विकार के हेतु होने पर भी जिनका चित्त विक्रिया को प्राप्त नहीं होता, वे ही धीर हैं"- इस नीति वाक्य को स्व-दृष्टान्त से दृढ़ बनाया। ___ पंचम- राजा की परवशता के कारण शालिभद्र को वैराग्य उत्पन्न हुआ। फिर बाद में श्री वीर प्रभु-वचन के अमृत सिंचन के योग से वैराग्य पल्लवित हुआ। तब प्रबल वैराग्य के उदय से चारित्रेच्छुक वह प्रतिदिन एक-एक प्रिया को त्यागने के लिए उद्यत हुआ। पर धन्य तो सुभद्रा के मुख से उसके दुःख की बात को सुनकर जरा हँसकर इस प्रकार बोला-"शालि तो अतिमूर्ख दिखाई देता है।" प्रिया ने कहा-"कैसी मूर्खता?" धन्य ने कहा-'"हे भोली नारियों! अगर त्यागने की इच्छा हो, तो एक बार में ही त्याग देना चाहिए, प्रतिक्षण परिणाम जो बदलते रहते हैं। जीव निमित्त के वश रहता है, अतः कहीं परिणाम न बदल जाये, अतः विलम्ब नहीं करना चाहिए। अतः जब कभी शुभ परिणाम उत्पन्न हो, तो वह काम उसी समय कर लेना चाहिए। "धर्म की गति त्वरित है" इस वचन से धर्म में विलम्ब नहीं करना चाहिए। अतः मैंने उसे मूर्ख कहा।" तब प्रियाओं ने विलास-युक्त नीतिवाक्य का अनुसरण करनेवाले वचन कहे-"स्वामी! इस जगत में कठिन कार्य करने के लिए कहनेवाले बहुत होते हैं, पर उस कार्य को करने में प्रवीण तो कोई माई का लाल ही होता है, सभी नहीं। ऐसी सम्पत्ति व नारियों का त्याग करने में वही समर्थ होता है, अन्य नहीं।" उसी क्षण एक प्रिया ने आगे होकर हँसते हुए कहा-"हाथ कंगन को
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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