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________________ धन्य-चरित्र/409 प्रतिक्षण पति-चरणों की उपासना में रत रहना जिनका स्वभाव है, जिनके हाव-भाव विलासों के द्वारा देव भी स्नेहाविल हो जाते हैं, जिनके अंगों में दोष का लेश-मात्र भी नहीं है। मानो कामदेव ने संपूर्ण शक्ति लगाकर प्रत्यक्ष काम की 32 मूर्तियाँ बनायी हों। ऐसी स्त्रियों में से वह रोज एक-एक स्त्री का त्याग करता है। आप जैसे निपुण पुरुष का ज्ञान तो देखिए कि आप जैसे निपुण पुरुष भी उसे कायर कहते हैं। पर आप भी क्या करें? अनादि मोह से आवृत जीवों की यही प्रवृत्ति होती है कि बिन बुलाये भी जबर्दस्ती भ्रमित होकर दूसरे के अनेक गुणों को छोड़कर नहीं रहे हुए दोषों को भी प्रकट करके वाचाल बनते हैं। इस जगत में घर में ही शूरवीर नपुंसक जीव हजारों हैं, क्योंकि परोपदेशकुशला दृश्यन्ते बहवो जनाः। स्वयं करणकाले तैश्छलं कृत्वा प्रणश्यते।। __ बहुत से लोग परोपदेश में कुशल देखे जाते है, पर जब स्वयं करने की बारी आती है, तो वे छल करके भाग जाते हैं। परम वीरों के संहरण रूप रण में सम्मुख होकर दृढ़ हृदय से एकमात्र साध्य कर्तव्य मानकर लड़नेवाले स्वल्प ही हैं। लौकिक व्यवहार में भी दुष्कर कार्य की बात को करनेवाले बहुत देखे जाते हैं, पर उसे करने के समय कोई एक भी नहीं ठहरता हैं। उसी प्रकार यहाँ भी दीक्षा की शिक्षा देने के लिए कौन मानव उत्साहित नहीं होता? पर हे स्वामी! अग्नि–पात्र की तरह दीक्षा लेना तो दुष्कर ही है। शालिभद्र की माता ने एक शालि को ही जन्म दिया है, जो इस प्रकार के दुष्कर व्रत को ग्रहण करने के लिए उद्यत हुआ है, भोगों को रोगों की तरह त्यागकर स्वयं उस संयम को क्यों नहीं आदरते? इस प्रकार पत्नियों की कल्याणकारी वाणी सुनकर धन्य उत्साहपूर्वक बोला-"तुम धन्य हो, जिनके द्वारा अपने-अपने उत्तम कुलों में जन्म लेने की बात को इस प्रकार के अवसरोचित वाक्यों को कहकर प्रकट किया है। कुलवती स्त्रियों के बिना ऐसा कहने में कौन समर्थ हो सकता है? मैं भी धन्य हूँ, आज मेरा नाम भी यथार्थ हो गया। आज मेरा भाग्य जागृत हुआ है। मैं तो शालिभद्र से भी ज्यादा भाग्यवान हूँ, क्योंकि अन्तराय देनेवाली प्रियाएँ भी इस प्रकार के शिक्षा-वचनों द्वारा सहायिकाएँ ही सिद्ध हुई हैं। मैं तुम्हारी शुभ वाणी को शास्त्र वाणी मानकर व्रत ग्रहण करूँगा। अतः हे नारियों! तुम भी प्रशान्त विचार युक्त बनो।" सभी पत्नियों को इस प्रकार कहकर योगीश्वरों को भी आश्चर्यचकित करते हुए बुद्धि के धनी धन्य ने पत्नियों को भी व्रत लेने के लिए सावधान किया। धन्य के लक्ष्मी का विस्तार अनुक्रम से इस प्रकार था-ऋद्धि व समृद्धि से भरे हुए 500 गाँव थे। 500 रथ, 500 अश्व, 500 धवल भवन, 500 दुकानें, अपनी बुद्धि से कुशल 500 वणिक-पुत्र, समुद्र व्यापार करने के लिए 500 जलपोत, अत्यन्त
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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