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________________ धन्य-चरित्र/347 रसास्वादन में अति लालसा थी। इस प्रकार कुछ समय व्यतीत होने पर उसकी माता ने यह सब जाना। तब उसने अपने पुत्र को एकान्त में ले जाकर समझाया-"बेटा! हमारा घर प्रमुख है- यह जानकर महेभ्य ने अपनी पुत्री का विवाह तुम्हारे साथ सुख-प्राप्ति के लिए किया था। हम भी इसी हेतु दूसरे की पुत्री अपने घर पर लाये। पर तुम तो उसकी खोज-खबर तक नहीं लेते। स्त्रियों के सभी सुखों में पति का मान प्रथम सुख है। उसके बिना सभी सुख भाड़े के सुखों की तरह प्रतीत होते हैं।" इत्यादि बहुत प्रकार से समझाये जाने पर वह "ठीक है" ठीक है" कहकर सब कुछ सुनकर मौन को धारणकर पुनः शास्त्र पढ़ने में लीन हो गया। तब श्रीमती ने पति से कहा-"आपका यह पुत्र सभी शास्त्रों में कुशल होने के बावजूद भी मूर्ख ही दिखाई देता है। इसे घर, व्यवहार आदि का कुछ भी ज्ञान नही है। कहा भी है काव्यं करोतु परिजल्पतु संस्कृतं वा, सर्वाः कलाः समधिगच्छतु वाच्यमानाः । लोकस्थितिं यदि न वेत्ति यथानुरूपां, सर्वस्य मूर्खनिकरस्य स चक्रवर्ती।।1।। संस्कृत में चाहे काव्य करे या बातचीत, सभी कलाओं को पढ़ते-पढ़ते सीख ले, पर अगर वह यथा-अनुरूप लोकस्थिती को नहीं जानता है, तो वह मूर्ख-समूह का शिरोमणि है। इस कारण से यह पढ़ा-लिखा मूर्ख सींग व पूंछ से रहित पशु ही है। जैसे लोक में वेद, वैद्यकी, व्याकरण, प्रणाम, लक्षण, ज्योतिषि आदि के पठित मूों की कथा प्रसिद्ध है, उसी प्रकार वह भी उन्हीं मूल् के सदृश है। अतः अगर इस पुत्र को मनुष्यों की श्रेणि में लाना है, तो इसे जुआरियों को सौंप दो। वे लोग इसे कुछ ही दिनों में निपुण बना देंगे। अन्यथा तो इसे हाथ से गया हुआ ही समझें।" श्रेष्ठी ने कहा-"हे प्रिये! ऐसी बुद्धि रखना शोभा नहीं देता, क्योंकिकाके शौचं धुतकारे च सत्यं, सर्पे क्षान्तिः स्त्रीषु कामोपशान्तिः। क्लीबे धैर्य मद्यपे तत्त्वचिन्ता, राजा मित्रं केन दृष्ट श्रुतं वा?||1|| कौए में शुक्लता, जुआरी में सत्यता, सर्प में क्षमा, स्त्रियों में काम की उपशान्ति, नपुंसक में धैर्य, शराबी में तत्त्व-चिन्ता तथा राजा में मैत्री-भाव क्या किसी ने देखा अथवा सुना है? __ ये सभी दोष जुआरियों में होते है, वे दुष्ट पापी व कुमार्गी होते हैं, उनकी संगति करवाने के लिए निर्मल पानी के स्वभाववाला पुत्र योग्य नहीं है। जैसे निमित का संयोग जोड़ा जायेगा, यह उसी के अनुरूप हो जायेगा। तब फिर हमें दुःख होगा। अभी तो यह गुणों का भाजन है, पर जब यह दुर्गुणी बनेगा, तो हमारे ही घर का लुटेरा बन जायेगा। हे प्रिये! पुत्रादि कितने ही पदार्थो के गुणों व दोषों की प्रबलता संसर्ग के अनुरूप ही होती है। इस विषय में तापस व भील के घर में दो
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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