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________________ धन्य-चरित्र/324 जान लिया था कि यह वस्तु नयी है, पर ऊनी होने से कर्कश स्पर्श के कारण रानियों के उपयोग के लिए आनंददायक नहीं होगी, इसीलिए उन्हें लौटा दिया। द्रव्य खर्च का मुझे कोई भय नहीं है।" रानी ने कहा-"अगर वास्तव में आपके मन में ऐसा ही था, तो एक कम्बल मँगवाकर मुझे दीजिए। जब तक मुझे रत्नकम्बल प्राप्त नहीं होगी, मैं भोजन नहीं करूँगी।" इस प्रकार रानी ने हठ धारण कर लिया। राजा उसकी यह जिद्द जानकर अपने आस्थान पर आये और अभय को बताया कि बाल हठ, स्त्री हठ, राज-हठ और योगी हट-ये चारों ही दुर्निवार्य है। अतः जैसे-तैसे भी करके एक रत्नकम्बल कहीं से भी लाओ। तब राजाज्ञा से बोलने में चतुर एक द्वारपाल को व्यापारियों के पास भेजा गया। उसने व्यापारियों के पास जाकर कहा-“हे साहूकार व्यापारियों! मगध के अधिपति महाराजा श्रेणिक ने आज्ञा दी है कि सवा लाख मूल्य नकद ग्रहण करके एक रत्नकम्बल प्रदान दीजिए। इसमें कोई संदेह नहीं है। वे नकद द्रव्य देकर रत्नकम्बल मँगवा रहे है। तब व्यापारियों ने ससम्मान प्रत्युत्तर दिया-'हे भद्र! राजा के चरणों में हम सेवकों का भक्तियुत प्रणाम कहना। यह विज्ञप्ति भी उन्हें देना कि जो आपने रत्नकम्बल मंगवाया है, यह हम पर बड़ी मेहरबानी की है। पर जब हम स्वामी के महल से लौटकर अपने उत्तारक-स्थान की ओर आ रहे थे, तो शालिभद्र जी के महल के नीचे से हमें गुजरते हुए देखकर तथा परदेशी व्यापारी जानकर शालिभद्र जी की माता ने हमें बुलवाकर पूछा-"आप क्या बेच रहे है?' तब हमनें उन्हें रत्नकम्बल दिखाये। उन्होंने मुँह माँगी कीमत देकर सारी कम्बलें खरीद लीं। अब हमारे पास एक भी कम्बल नहीं है। अतः अब हम क्या करें? हम सेवक तो बड़ी आशा लेकर सबसे पहले स्वामी के पास ही गये थे, पर तब राजा की खरीदने की इच्छा ही नहीं थी। अतः हमने भी भद्रा माता को सारा माल बेच दिया। पर धन्य है आपके स्वामी! जिनकी छत्रछाया में ऐसे इभ्य सेठ निवास करते हैं। (यहाँ पर इभ्य का अर्थ इस प्रकार है। हाथी पर रखी हुई अम्बाड़ी सहित जितनी ऊँचाई होती है, उससे भी अधिक ऊँचे हीरे, मणि, मोती, रत्नों आदि के ढ़ेर जिसके पास हों, वह इभ्य कहलाता है।) उस एक इभ्य सेठ ने ही हमारे परदेश से लाये हुए अति-मूल्यवान वस्तु को लाने के श्रम को सफल कर दिया। इसके अलावा अन्य कोई भी आज्ञा देंगे, तो हम सिर के बल उसे पूर्ण करेंगे।' इस प्रकार का उत्तर देकर सम्मानपूर्वक द्वारपाल को विदा किया। द्वारपाल ने भी राजा के पास आकर सारा वृत्तान्त निवेदन किया। तब महाराजा श्रेणिक तथा अभय ने एक प्रधान-पुरुष शालिभद्र की माता के पास प्रेषित किया। वह शालिभद्र के भव्य भवन में पहुँचा। देव-भवन के तुल्य घर को देखकर आश्चर्यान्वित होते हुए
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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