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________________ धन्य-चरित्र/322 भद्रा ने व्यापारियों के मन की अधीरता जानकर मुस्कराते हुए कोषाध्यक्ष को आज्ञा दी।“जितने धन से ये प्रसन्नचित हो जायें, उतने अर्थात् बीस लाख स्वर्ण मुद्राएँ इन्हें दे दो।" भाण्डारिक के द्वारा भी उन व्यापारियों को ले जाया गया। उन्हें साथ ले जाकर खजाने का द्वार खोला। व्यापारियों ने ज्योंही अन्दर प्रवेश किया, उन्होंने देखा कि एक तरफ तो अगणित मोहरों के ढेर लगे हुए हैं, दूसरी तरफ स्वर्ण-दीनारें ढेरों के रूप में पड़ी हुई हैं। एक तरफ रजत मुद्राओं के अनेक ढेर लगे हुए थे। उनसे आगे मोतियों से कोठे भरे पड़े थे। उससे आगे स्वर्ण का ढेर लगा हुआ था। उसके बाद माणिक्य की अपार राशि थी। उसके बाद नीलमणि, वैडूर्य-रत्न, परवाला, फीरोज रत्न, रक्तमणि आदि के अनेको ढेर लगे हुए थे। इस प्रकार चौरासी प्रकार के रत्नों की अगणित राशि को देखकर विस्मित होते हुए वे विचार करने लगे-"क्या यह सत्य है या स्वप्न है या इन्द्रजाल है या कोई देवमाया है? यह क्या है? अहो! उसका प्रबल पुण्य! इतने धन का स्वामी तो जो सोचेगा, वही कर गुजरेगा। यह राजगृह नगर धन्य है, जहाँ इस प्रकार के सेठ-साहुकार रहते हैं। राजगृह नाम तो वास्तव में अर्थपरक है।'' ___ तब उन विदेशी व्यापारियों ने यथारुचि धन माँगा, भाण्डागार ने भी लेख करके धन दे दिया। धन लेकर वे सोचने लगे-"हमारे द्वारा अनजाने में ही धन को लेकर जो अधीरता प्रदर्शित की गयी, वह ठीक नहीं थी।" इस प्रकार लज्जित होते हुए वे पुनः भद्रा के पास आये। भद्रा ने कहा-"क्या आपने मन-ईप्सित धन प्राप्त किया?" उन्होंने कहा-"माता! आपकी कृपा से क्या प्राप्त नहीं होता?" भद्रा ने पुनः कहा-"एक-एक कम्बल के दो-दो टुकड़े कर दीजिए, क्योंकि मेरी 32 पुत्रवधुएँ हैं। पर कम्बल तो सोलह ही हैं तो कैसे युक्त होगा? इसीलिए मैं टुकड़े करवा रही हूँ। यह सुनकर व्यापारी चमत्कृत होते हुए मन में विचार करने लगे-'अहो! पुण्य की प्रगल्भता! जो कोई अन्य व्यक्ति जैसे-तैसे एक भी रत्नकम्बल खरीदता है, वह अपने प्राणों की तरह यत्न-पूर्वक इसकी रक्षा करता है और पर्व आदि दिनों में ही इसको प्रयोग में लाता है। यह तो पहले से ही टुकड़े करवा रही है और उस पर भी कोई विचार नहीं हैं। अतः जगत में पुण्य और अपुण्य में महान अन्तर दिखायी देता है। बहुरत्ना वसुन्धरा" यह युक्ति सत्य रूप से चरितार्थ है।" तब उन कम्बलों के टुकड़े करके शालिभद्र के पुण्य का वर्णन करते हुए अपने उत्तारक स्थान पर चले गये। इसके बाद भद्रा ने स्नान का समय होने पर दासियों के हाथ वे 32 ही टुकड़े दिये। दासियाँ उन कम्बल के खण्डों को लेकर स्नान-घर में पहुँची। प्रत्येक
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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