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________________ धन्य-चरित्र/314 देती हूँ, वही खाकर चला जाता है। आज कुछ भी देखकर व सुनकर ही यह तीव्र इच्छा इसके मन में पैदा हुई है। इसी कारण से मेरे आगे आकर माँग कर रहा है। पर मैं कैसे निर्भाग्यों की शिरोमणि हूँ? बुढ़ापे में एक मात्र लाठी के सहारे के समान इसके खीर-मात्र भोज की इच्छा रूपी दोहद को पूर्ण करने में समर्थ नहीं हूँ। धिक्कार है मेरे जन्म को!" इस प्रकार विचार करके दीन के समान बालक को सम्मुख देखकर रोने लगी, क्योंकि निर्बल बालकों की इच्छा पूर्ण न होने पर रुदन करना ही उनका बल कहा जाता है। तब रोती हुई माता को देखकर बालक भी रोने लगा। उन दोनों का करुण रुदन सुनकर पड़ोसिने अपने-अपने घर से बाहर निकल आयी। उन्होंने पूछा-"तुम दोनों के रुदन का कारण है? अपना दुःख कहो। अगर साध्य होगा, तो हम सब मिलकर अवश्य ही उसका निवारण करेंगी।" तब वृद्धा ने अपना सम्पूर्ण दुःख बतलाकर कहा-“हे भाग्यवतियों! निर्भागियों के लिए इच्छा-पूर्ति न होने पर रुदन का ही सहारा है।" यह सुनकर उसके दुःख से दुःखात होते हुए उन स्त्रियों ने कहा-"हे माता! खीर की अप्राप्ति-मात्र से इतना दुःख मत करो। यह कार्य तो हमसे साध्य है- ऐसा मान लो।" तब एक ने कहा-"दूध तो मेरे घर में है, तुम्हे जितना चाहिए, उतना ले लो।" दूसरों ने कहा-"निर्मल अखण्ड कलम जाति के चावल मेरे घर में हैं। मैं तुम्हें दे देती हूँ। तुम उन्हें ग्रहण करके बालक की इच्छा पूर्ण करो।" उन दोनों के वचन सुनकर तीसरी ने कहा-"अति श्वेत मंदाकिनी के तट पर रही हुई बालुका के समान खाण्ड मैं तुम्हें दे दूंगी। तुम उसे ग्रहण कर लेना।" तब चौथी ने कहा-"अभी-अभी तपाया हुआ स्वच्छ घी मेरे घर में है। मैं तुम्हे देती हूँ, जिसे ग्रहण करके तुम जल्दी से अपने बालक की इच्छा पूर्ण करो।" उन स्त्रियों से इस प्रकार के वचन सुनकर प्रसन्न होते हुए वृद्धा ने कहा-'हे भाग्यशालिनियों! इच्छा-पूर्ति करने में कल्प-वृक्ष के समान आप लोगों की कृपा हुई। अतः मेरे मनोरथ सफल हुए- मैं यही मानती हूँ।" फिर वृद्धा ने उनसे दूध आदि सामग्री लेकर घृत-खाण्डादि से मिश्रित खीर तैयार की। पुत्र-वत्सला माता पुत्र की इच्छा को पूर्ण करने में विलम्ब नहीं करती। फिर बालक को बुलाकर भोजन करने के लिए बैठाया। थाल में खीर
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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