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________________ धन्य - चरित्र / 306 "इसे संयम में प्रवीण बनाना " - इस प्रकार कहकर महत्तरा आर्या के सौंप दिया । अब भोगदेव मुनि विविध श्रुत, संयम, तप, ध्यान आदि के द्वारा निरतिचार चारित्र की आराधना करके, अन्त में अनशन करके सर्वार्थसिद्ध विमान में 33 सागरोपम की आयुष्यवाले देव के रूप में उत्पन्न हुए। वहाँ से च्यवकर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न हुए। यथावसर संयम की आराधना करके, घातिकर्मों का क्षय करके, केवलज्ञान को प्राप्त करके, अनेक भव्यों को प्रतिबुद्ध करके, अन्त में अनशन करके योग-निरोध के द्वारा पाँच हस्व अक्षर का उच्चारण करने में लगनेवाले समय - मात्र में सकल कर्मों का क्षय करके मोक्ष में जायेंगे । भोगवती भी उसी प्रकार मोक्ष में जायेगी । उधर श्रीदेव लक्ष्मी से छला हुआ, दरिद्र अवस्था को प्राप्त, द्रव्य के बिना व्यापार आदि जीविका के उपाय से रहित, उदर को भरने के लिए दूसरों के घरों में उच्च-नीच कार्यों को करते हुए जैसे-तैसे आजीविका को करता हुआ भी त्रिकाल में लक्ष्मी का पूजन करता था । तब लोग दोनों ही अवस्था को देखकर श्रीदेव को कहने लगे - "हे श्रीदेव! तुमने अन्य देवों को छोड़कर त्रिकरण की शुद्धिपूर्वक त्रिकाल में भक्ति-पूर्वक जिसकी पूजा-अर्चना की, वह लक्ष्मी कहाँ चली गयी? क्यों तुम्हारी सहायता नहीं करती? पहले तो तुम भुजाएँ ऊपर चढ़ाकर कहते थे कि मेरे तो एकमात्र लक्ष्मी देवता ही मान्य है, पूज्य है, मैं अन्य किसी भी देव को नमस्कार भी नहीं करता। अब कहो ?" इस प्रकार एक के द्वारा उपहास किये जाने पर दूसरा कहने लगा- "हे भाई ! तुम ऐसा क्यों बोलते हो? इसके ऊपर तो लक्ष्मी की कृपा है, क्योंकि अनेक व्यापार आदि कार्यों में व्यग्र होने से लक्ष्मी आराधना करने में इसे अन्तराय होती थी, यह देखकर लक्ष्मी ने जाना कि मुझ में भक्ति-परायण इसका सर्वधन व्यापार आदि भक्ति में अन्तराय करता है । अतः इसे अन्तराय करनेवाला सभी धन मेरे द्वारा हर लेना चाहिए, जिससे यह मेरा बिना रुके लगातार स्मरण कर सके । इसलिए श्रीदेवी इसके ऊपर प्रसन्न ही है, उसी प्रसन्नता के कारण उसने इसका सारा धन हर लिया है। तुम क्या जानो? लक्ष्मी तो इसकी परीक्षा कर रही है। थोड़े ही दिनों में बादलों की बरसात की तरह ही इसके घर में धन की बरसात होगी।" इस प्रकार लोग उसका उपहास करते थे, पर वह गरीब होने से कुछ भी उत्तर देने में समर्थ नहीं था, पर मन में अत्यधिक दुःख करता था । इस प्रकार दुःखपूर्वक निर्वाह करते हुए कितने ही दिन बीत जाने पर श्रीदेव के घर में एक सुलक्षणोंवाला पुत्र उत्पन्न हुआ । उसके पुण्यबल से धीरे-धीरे लक्ष्मी पुनः उसके
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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