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________________ धन्य-चरित्र/21 तब किसी पढ़े-लिखे व्यक्ति ने कहा-"इस पर प्रेत का आवेश है या फिर किसी वायु आदि की विकृति से जल स्फुरित हो रहा है। अतः इसके प्रच्छन्न रूप से नौ बार तप्त शलाका द्वारा नौ ही अंगों में डाम दो, जिससे यह स्वभावस्थ हो जायेगा। नहीं तो इसकी विकृति की वृद्धि होती जायेगी। इसका यह रोग असाध्य हो जायेगा। अतः शीघ्रता करो।" पुत्र आदि द्वारा वैसा ही किया गया। स्वजनों ने उसे हाथों से गाढ़ रूप से पकड़ लिया। किसी अन्य द्वारा नौ अंगों में नौ डाम दिये गये। तब किसी ने कहा-"ऐसा करने पर अगर स्वस्थ न हो, तो फिर क्या करना चाहिए?" तब एक व्यक्ति ने कहा-"बेड़ी में बाँधकर एक अंधकार–मय कोटड़ी में डालकर इक्कीस दिनों तक भूखा रखना चाहिए।" विप्र ने जाना-"कार्य हो गया। अगर मैं आग्रह का त्याग नहीं करूँगा, तो बेड़ी में बाँध दिया जाऊँगा। देव-वचन अन्यथा नहीं होते।" ___ इस प्रकार विचार कर वाचालता का परित्याग करके कपट मूर्छा को प्राप्त हुआ। चार घड़ी मौन करके बाद में कष्टपूर्वक जागृत होकर पुत्रों को पूछा-"ये लोग क्यों इकट्ठे हुए हैं? मैंने आभूषण आदि क्यों पहन रखे हैं?" पुत्रों ने कहा-"तात! आप पर किसी भूत अथवा वात आदि का प्रकोप हो गया था। आपने तो दो हजार रूपये व्यर्थ कर दिये।" यह सुनकर वह कपट-पूर्वक हाहाकार करने लगा-"हाय! हाय! यह क्या हो गया? इतने रूपये वापस कैसे मिलेंगे?" इस प्रकार दुःख करने लगा। तब सभी ने कहा-"अब यह स्वभावस्थ हो गया है।" वह कृपण भी पुनः पहले के समान रहने लगा। इसलिए दान की मति भी पालना सुलभ नहीं है। यदि पुण्यानुबंधी पुण्य होता है, तो उसके उदय में ही पात्र-दान की मति होती है, अन्यथा नहीं। अतः भव्यों को सुपात्र-दान में आदर करना चाहिए। पात्र-दान की विधि इस प्रकार है-जो पुरुष उत्साह-पूर्वक, उदारता से समस्त राजलक्ष्मी के निदानपूर्वक सुपात्र-दान देता है, वह धन्यात्मा धन्यकुमार के समान जगत-प्रशंसनीय सम्पदा को प्राप्त करता है। जो पुरुष निःसत्व दान देकर भी बाद में पश्चात्ताप करते हैं, वे पुरुष परभव में दुःखी होते हैं, लक्ष्मी-विहीन होते हैं। जैसे कि धन्यकुमार के तीनों बड़े भाई हुए। उन तीनों का तथा धन्यकुमार का चरित्र प्रारम्भ किया जाता है इस भरत क्षेत्र के दक्षिण दिशा भाग में कल्याण-श्री, ऋद्धि-समृद्धि के
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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