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________________ धन्य-चरित्र/281 धन के अर्जन में दुःख है। धन के रक्षण में दुःख है। आय में दुःख है। व्यय में दुःख है। दुःख के साधन रूप धन को धिक्कार है। ___ अत्यधिक क्लेशों और अत्यधिक पापों के द्वारा पूर्व पुण्य-योग के उदय से धन प्राप्त होता है। फिर भी उसके रक्षण में भी महादुःख है, क्योंकि धन से अनेक भय प्राप्त होते हैं। कहा भी है दायादाः स्पृहयन्ति तस्करगणा मुष्णन्ति भूमिभुजोदुरेण च्छलमाकलय्य हुतभुग भस्मीकरोति क्षणात् । अभ्यः प्लावयते क्षितौ विनिहितं यक्षा हरन्ति धुवं, दुर्वृत्तास्तनया नयन्ति निधनं धिग् धिग् धनं तद् बहु ।। लेनदार स्पृहा करते हैं, चोर चुरा लेते हैं, राजा दुश्छल के द्वारा ग्रहण कर लेता है, अग्नि क्षणभर में भस्मसात् कर देती है, पानी डुबो देता है, पृथ्वी में रखा हुआ धन निश्चित रूप से यक्ष हर लेते हैं, बुरी वृत्तिवाले पुत्र धन के लिए पिता का भी नाश कर देते हैं। ऐसे धन को बार-बार धिक्कार है। ___ कदाचित् पाप का उदय होने से धन के नष्ट हो जाने पर लोक-व्यवहार, आजीविका, द्रव्य से होनेवाले सुख के विरह के भय से मनुष्य महा-विषाद व शोक को प्राप्त करता है। अनेक विकल्पों से आकुल आर्त व रौद्र ध्यान को ध्याते हुए आठ प्रकार के अशुभ कर्मों का बंध करते हैं। लक्ष्मी के नाश से कातर होते हुए मूढ़ अध्यवसायों के द्वारा मरण तक को भी प्राप्त होते हैं। मरकर नरक-निगोद आदि में अपरिमित दुःख को प्राप्त होते हैं। कभी सुकृत के उदय से धन प्राप्त होता भी है और जन्म से लेकर मरण तक स्थिर भी रहता है, तो प्रकृति से दुष्ट आशयवाली लक्ष्मी काम–भोगों के लिए प्रेरित करती है। काम में आसक्त जीव काम-भोगों के लिए छ: काय के जीवों का वध करता है तथा अधिकतापूर्वक सप्त-व्यसनों का सेवन करता है। उनका सेवन करते हुए पुनः अनंत संसार भ्रमण करानेवाले पाप-कर्म को बाँधकर भव पूर्ण करके नरक रूपी कूप में गिर जाता है। जब तक एक इन्द्रिय के वश से प्राणी महा-दुःख को प्राप्त करता है, तो पाँचों इन्द्रियों के वश में रहा हुआ जीव दुःख को प्राप्त करे-इसमें क्या आश्चर्य है? इसलिए सभी दुष्ट अर्थों की प्रेरक लक्ष्मी बाण-दण्ड की तरह प्राणियों के प्राणों की अपहारिका व समस्त दोषों की जननी है।" इस प्रकार धर्मोपदेश की पद्धति में जगत गुरु के द्वारा कहे जाते हुए केरल राजपुत्र उठकर विनय-सहित कर का सम्पुट बनाकर प्रणाम करके त्रिजगद्गुरु जिनेन्द्र को प्रश्न पूछने लगा-"स्वामी! आपके द्वारा तो लक्ष्मी को सर्व दुःखों का कारण तथा हेय रूप बताया गया है। पर हस्ती-अश्व-रथ आदि
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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