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________________ धन्य-चरित्र/273 लगे। इस प्रकार वहाँ रहते हुए किचिंत से भी अल्प धन प्राप्त हुआ। उसके द्वारा स्वयं खेती करके धान्य का उपार्जन किया। घर के निर्वाह के योग्य धान्य घर पर ही छोड़कर शेष धान्य की गोणी भरकर बैलों पर वहन कराते हुए एक ग्राम से दूसरे ग्राम तथा एक नगर से दूसरे नगर घूमते हुए निर्भाग्यता के योग से इच्छित लाभ को नहीं प्राप्त करते हुए एक बार मगध देश के राजगृह नगर में गये। वहाँ चतुष्पथ में धान्य की गोणियों को उतारकर धान्य की दुकानों के बारे में पूछने लगे। अनेक देशों से धान्य आया हुआ होने से मूल्य आधा हो गया है-यह सुनकर वे निराश हो गये। अभागों के लिए सर्वत्र विधि अविहित होती है। कहा भी है अन्यद्विचिन्त्यते लोकैर्भवेदन्यदभाग्यतः। कर्णे वसति भूषार्थोत्कीर्णे दरिद्रिणां मलः ।।1।। लोगों के द्वारा सोचा कुछ हो जाता है और अभाग्य से कुछ ओर ही हो जाता है। कान में विभूषा के लिए धारण किया हुआ कुण्डल गरीबी में घाव देता है। जहाँ भाग्यहीन होते हैं, वहाँ आपत्तियाँ भी आगे-आगे आती हैं। अतः छित्वा पाशमपास्य कूटरचनां भङ्क्त्वा बलाद् वागुरां, पर्यन्ताग्निशिखाकलापजटिलाद् निःसृत्य दूरं वनात् । ___ व्याधानां शरगोचरादतिजवेनोत्प्लुत्य धावन् मृगः, कूपान्तः पतितः करोति विमुखे किं वा विधौ पौरुषम्? ||1|| पाश को छेद करके, कूट रचना को दूर करके, जाल को बलपूर्वक तोड़कर, वन के अन्त तक फैली हुई अग्निशिखा के समूह से जटिल वन से दूर निकलकर, शिकारियों के बाण के निशाने से दूर होते हुए अति शीघ्रता से उछलकर दौड़ता हुआ मृग कूप के अन्दर गिरता हुआ क्या विधि के विमुख होने पर कुछ भी पौरुष कर सकता है? इस प्रकार वे निराश होते हुए धान्य बेचने के लिए चतुष्पथ पर खड़े रहे, पर किसी के भी साथ मूल्य का सत्यंकार नहीं हुआ। उनके द्वारा मार्ग पर धान्य की गोणियों का समूह अनुत्साहपूर्वक इधर-उधर पड़ा हुआ था। दूसरे दिन विविध आतोद्य-वादकों के द्वार वादिंत्र बजाये जाते हुए, पदाति-अश्व आदि सेनाओं से घिरे हुए, बंदी-जनों के द्वारा अनेक विरुदों के पढ़े जाते हुए सवारी के द्वारा राज-सभा में आते हुए धन्य ने अपने आगे जानेवाले सैनिकों के द्वारा सवारी की स्खलना होने की आशंका से इधर-उधर पड़ी हुई गोणियों को यथा-स्थान रखने के लिए और मार्ग को सरल बनाने के लिए बेंत से ताड़ित
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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