SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 279
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धन्य-चरित्र/271 धनसार-अधिकार अब कौशाम्बी में स्थित तीन पुत्रों से युक्त धन्य के पिता धनसार के बारे में बताया जाता है। राजगृह में धन्य व अभय प्रतिदिन प्रेम की अधिकता के साथ त्रि-वर्ग के साधन को करते हुए सुख से समय व्यतीत कर रहे थे। उधर कौशाम्बी में जिन तीन भाइयों को धन्य ने पाँच-सौ ग्राम दिये थे, वे भाई उत्कृष्ट अभाग्य की रेखा की तरह उन ग्रामों में अपनी आज्ञा स्थापित करने लगे। शनि की दृष्टि की तरह उनकी आज्ञा से आश्रित गाँवों में भाग्य-हीन होने से दूसरे ग्रामों में बरसते हुए मेघ उनके ग्रामों में नहीं बरसे, क्योंकि भाग्य के योग से इच्छित वृष्टि होती है। तब उस ग्राम के वासी कुछ लोग वृष्टि के अभाव से अपनी-अपनी जीविका के लिए तथा अपने चतुष्पदों की आजीविका के लिए अन्य-अन्य ग्रामों में चले गये, क्योंकि फलरहित वृक्षों को छोड़कर पक्षी अन्य वृक्षों का आश्रय लेते ही हैं। तृण तथा धान्य का क्षय होने पर पेट भरने के साधनों का अभाव होने से तथा पीने के पानी का भी अभाव होने से जलचर जीवों की तरह कुछ गज-अश्व आदि भूख-प्यास से, कुछ रोगोत्पत्ति से मर गये। पूर्व संचित शुभ-कर्मों के बिना सम्पदा स्थित नहीं रह पाती। सेवक भी आजीविका प्राप्त नहीं होने से उन्हें छोड़कर अन्यत्र चले गये। दुष्काल पड़ने से भूख से व्याकुल भीलों ने उनकी आज्ञा के वशवर्ती रहे हुए ग्रामों को अपने कब्जे में ले लिया। उन ग्रामों की वैसी अवस्था का जानकार कोई भी सार्थ उस मार्ग से नहीं जाता था। लोगों के गमनागमन का अभाव होने से क्रय-विक्रय किसके साथ किया जाये? अतः व्यापारी भी महानगरों में चले गये। कोई-कोई तो "रात्रि में खात्र देकर भील घर लूट लेंगे"- इस भय से भाग गये। कुछ लोग तो बिचारे सामान्य कर्मकर की वृत्ति को करनेवाले थे। महाजनों के अभाव में उनसे कर्मकर की वृत्ति कौन करावे? अतः वे भी वहाँ से चले गये। इस प्रकार अभाग्य के योग से लोग ऐसे निर्धन हुए कि उनके पास देह-मात्र ही धन के रूप में रह गयी। तब वे चिंतन करने लगे-"हम कौशाम्बी में जाकर शतानीक के पास से सेना लाकर इन भीलों को शिक्षा दें, क्योंकि जाने के समय धन्य राजा ने कहा था-"मेरे ग्रामों व कुटुम्ब की रक्षा करना मेरे योग्य है और सहायता करना भी मेरा कर्तव्य है।" इस कारण से वहाँ जाकर हमें मन-इच्छित करके सुख से रहना चाहिए। इस प्रकार विचार करके कौशाम्बी जाने के लिए तैयार हुए, तब तक
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy