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________________ धन्य-चरित्र/259 यह कार्य मेरे हाथ आया। कार्य सम्पन्न हो जाने पर राजा मुझ पर महा-कृपा करेंगे। ये दोनों भी महा-इभ्य की स्त्रियाँ हैं। अतः हर्षपूर्वक मुझे अतीव धन प्रदान करेंगी।" फिर राजा के पास जाकर दूती ने कहा-"स्वामी! मैंने आपके आदेश की सिद्धि के लिए महा-प्रयत्न व महा-प्रयासपूर्वक कार्य प्रायः करके सिद्ध कर लिया है। पर वे दोनों तो यहाँ आने में समर्थ नहीं हैं। मैं भी उनके घर पर अत्यधिक प्रयत्न के द्वारा ही जाने में समर्थ हो पायी हूँ। राजा के अन्तःपुर से भी ज्यादा विषम स्थितिवाले उनके घर से उनका निकलना अशक्य है। पर मैंने आपकी सेवाकारिता से तथा आपके पुण्यबल से वचन-रचना करके आपके विषय में उनके मन में गाढ़ अनुराग पैदा कर दिया हैं। आपके द्वारा सामान्य वेश में एकाकी जाने पर ही कार्य की सिद्धि होगी और वह मैं आपको अवसर आने पर बता दूंगी। उन दोनों के रूप लावण्य, चातुर्य और सौभाग्य के बारे में जो आपने वर्णन किया था, उससे कहीं अधिक ही मैंने पाया। इन दोनों को देखकर कौन मोहित नहीं होगा? आपके पुण्य-बल से ही कार्य हुआ हैं।" दूती के इस प्रकार के वचनों को सुनकर हर्षित होते हुए राजा उसको बोला-“हे विदुषी! मैं तुम्हारे वचन-कौशल्य को जानता हूँ। मेरे द्वारा भी इस प्रकार से जानकर ही तुमको भेजा गया था।" इस प्रकार कहकर अत्यधिक धन-वस्त्रादि देकर उसे विसर्जित किया। राजा भी उस दिन से ही आशा रूपी गर्दभी के पाश में पड़ता हुआ महा अनर्थकारी मनोरथों को करता हुआ कल्पना-जाल में गिरते हुए मन से उग्र कर्म-बन्ध को रचने लगा। अब उन दोनों ने वह सारी बातें अभय को बतायीं। श्रेष्ठी अभय ने भी दूसरे दिन सभी महा-इभ्य व्यापारियों को बुलाकर कहा-“मुझे जो भ्रातृ-दुःख है, वह सब तो आपको विदित ही है। अनेकों औषध-मंत्रादि से भी वह स्वस्थ नहीं हुआ। एक बार हमारे घर पर भिक्षा के लिए दूर देश से एक विद्वान अतिथि पधारे। उपकार में रसिक वे मेरे दुःख को देखकर कहने लगे कि आप व्यर्थ ही क्यों प्रयत्न करते हैं? यह तो किसी दुष्ट देव से अधिष्ठित हैं। अतः किसी भी उपाय से ठीक नहीं होगा। पर अगर तुम्हारी इच्छा इसे ठीक करने की है, तो तुम अमुक तीर्थ में जाओ। वहाँ आशापुरी नामकी देवी है। उसके देवालय के सामने सर्व दोषों का नाश करनेवाला सर्वापद्धर नामक सरोवर है। वहाँ 29 दिनों तक स्नान कराकर देवी का पूजन कराओ जिससे सभी दोष नष्ट हो जायेंगे। इस प्रकार के उनके वचनों को सुनकर मैंने एक महीने के अन्दर वहाँ
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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