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________________ धन्य-चरित्र/251 भेजेगा। तब दूती के कथन को सुनकर पहले मीठे वचनों के द्वारा उसे तृप्त करके यथायोग्य कुछ भी खान-पान आदि के द्वारा अपनी ओर आकर्षित करके उसके घर की खोज-खबर अच्छी तरह से ले लेना। उसके बाद बातों ही बातों में यह अहसास करा देना कि संगम अति दुर्लभ प्रतीत होता है। इस प्रकार कह देना, क्योंकि आज तक हमनें किसी के साथ भी आँखें नहीं लड़ाई हैं। पति के सिवाय किसी के भी आगे वचन-विलास नहीं किया है। पर पता नहीं, किस पूर्वकृत सम्बन्ध से राजा के साथ प्रेम हो गया? पर हे बहन! उनसे मिलना तो अत्यन्त दुष्कर है। कैसे होगा? हमारे गृह-निवास की स्थिति राजा अन्तःपुर से अति विषम है। इस प्रकार की वचन-रचना के द्वारा अति-दुष्कर मिलन और पूर्ण रागिता को दिखाकर जिस प्रकार से आतुर हो, वैसा ही करना चाहिए। फिर से दूती को कहना-"अगर हम पर अवितथ राग है, तो हमें कोई उपाय दिखाइए। हमारे कहे हुए इस कष्ट को स्वीकार करेंगे, तो ही किसी प्रकार मिलन सम्भव होगा, अन्यथा नहीं। तुम भी यथा-अवसर प्राप्त करके ही यहाँ आना। बहुत ज्यादा मत आना।" इस प्रकार अभय ने उन दोनों को अनेक प्रकार से शिक्षा दी और उन दोनों ने भी वह सभी अवधारण कर लीं। पुनः दूसरे दिन भी राजा उसी गवाक्ष के पास से होकर निकला। उन दोनों के द्वारा भी कटाक्ष आदि पाँच काम बाणों के द्वारा तथा विविध विधानों से विशद रीति से उसे बींधकर जर्जर कर दिया। वह विषय काम–अवस्था में गिरता हुआ सोचने लगा-"देवियों से भी ज्यादा अनुपम रूपवाली और चातुर्य से युक्त दोनों किसी भी प्रकार से हाथ में आ जाये, तो अच्छा हो।" इस प्रकार प्रतिक्षण अनुताप से तप्त होते हुए महल में आ गया। सोचने लगा-"अगर कोई निपुणा, असर को जाननेवाली, वचन में कुशल दूती किसी भी बहाने से इन दोनों के पास जायें, इनके आशय का पता चलें, तो किसी प्रकार मनोरथ की पूर्ति हो सकती है।" फिर उसने एक चपल दूती को बुलाकर सारी बातें समझायी। दूती ने कहा-"स्वामी! यह महा-विषम कार्य है, क्योंकि अपरिचित श्रेष्ठी के घर पर जाना अति-दुष्कर कार्य है। उसके भी ऊपर उसके घर की बातों को जानना तो अति दुष्कर कार्य है। आपने ऐसे विषम कार्य को करने के लिए आदेश दिया है। फिर भी आपके चरणों की कृपा से तथा अपने चातुर्य की स्फुरणा के द्वारा आपके आदेश के अनुरूप उनकी सभी खोज-खबर लेकर आपको निवेदन करूँगी, तब आप मेरे प्रणाम को स्वीकार करना।"
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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