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________________ धन्य-चरित्र/246 अधिकारी को आदेश दिया कि इस श्रेष्ठी से आधा शुल्क ही लिया जाये, उससे ज्यादा नहीं। इस प्रकार कहकर उन्हें भेज दिया। अभय ने भी राजमार्ग पर अनेक झरोखों तथा द्वारों से युक्त न अधिक खुला और न अधिक बंद-ऐसा राजभवन के समान सुन्दर भवन भाड़े पर ग्रहण करके उसमें निवास करने लगा। अभयचन्द्र श्रेष्ठी नाम से वह वहाँ विख्यात हो गया। एक बहुत बड़ी आस्थान सभा में व्यापार करने लगा। अपनी चतुराई भरी बातों से नगर के लोगों को रंजित करने लगा। घर-घर में लोग उसके गुणों की चर्चा करने लगे कि कोई पूर्व में अदृष्ट-ऐसा सज्जनों का शिरोमणि सेठ आया है। वे देश धन्य हैं, जहाँ ऐसे लोग वसते हैं। उसके घर के मध्य-द्वार पर सदा द्वारपाल रहता था। वह किसी को भी अन्दर नहीं जाने देता था। पूछने पर कहता था कि देश व कुल की ऐसी ही परम्परा है। प्रद्योत की आकृतिवाले पुरुष को अभय ने शिक्षा दी-"तुम आज ही भागकर चतुष्पथ आदि में जाओ। मार्ग में कुछ-कुछ बकते रहना। पागलों जैसी क्रिया करते हुए इधर-उधर घूमना। बाद में जब मैं तुम्हें पकड़ने के लिए जाऊँ, तो तुम वेग से भागते हुए मुझसे दूर भागने की कोशिश करना। दो-तीन चार घटिका बीत जाने पर मेरे हाथ में आना। हाथ में आने के बाद भी फिर से हाथ छुड़ाकर भाग जाना। लोगों के आगे इस प्रकार कहना कि मैं राजा प्रद्योत हूँ। मुझे पकड़ने के लिए अभय आ रहा है। उसे रोको। इस प्रकार कहकर धूल को उठा-उठा कर फेंकना। उसके बाद मैं तुम्हे जबर्दस्ती से पकड़कर चारपायी में बाँधकर घर की ओर ले जाऊँगा। तब तुम जैसे-तैसे सैनिकों व पुरजनों के आगे कहना कि हे लोगों! हे सैनिकों! मुझ प्रद्योत राजा को बाँधकर और पकड़कर यह अभय ले जा रहा है। अतः तुम लोग मुझे क्यों नहीं छुड़वाते हो? इस प्रकार खाट पर रहते हुए ही बार-बार प्रलाप करना। बीच-बीच में और कुछ अनाप-शनाप बकने लगना। फिर पुनः कहना कि मैं प्रद्योत राजा हूँ। इस प्रकार इस क्रिया को रोज-रोज दोहराते रहना। मैं तुम्हे रोज खाट पर बाँधकर घर ले जाऊँगा। फिर घर के अन्दर आकर सुखपूर्वक स्वस्थ होकर रहना। यथा- इच्छा भोजनादि करना।" इस प्रकार उसे शिक्षा देकर रखा। प्रभात होने पर वह उसी प्रकार करने लगा। घर से भागकर चतुष्पथ आदि पर घूमने लगा। पहले अभय ने जो कुछ सिखाया था, वह सभी बोलने लगा। लोग उसके पागलपन को देखकर हँसने लगे। अगर कोई पूछता कि "तुम कौन हो?" तो वह उत्तर देता कि "मैं प्रद्योत नामक राजा हूँ। मैं समस्त ग्राम-नगर
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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