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________________ धन्य - चरित्र / 242 इसके साथ ही इसने समस्त श्रेष्ठी - जनों के शिरोमणि श्रीगोभद्र सेठ को एक धूर्त के द्वारा की हुई कपट युक्ति में फँस जाने पर अपने प्रतिभा - कौशल से बचाया है । मद की उत्कटता से आलान - स्तम्भ को उखाड़कर उन्मत्त होते हुए मेरे गज सेचनक ने जब सम्पूर्ण नगरी में उत्पात मचाया, तो गज - दमन की कुशल शिक्षा से शिक्षित इसने उसको अपने वश में करके आलान में बाँधकर सभी पर अत्युपकार किया है। इस गुण-निधान के किस-किस गुण का वर्णन करूँ । यह धन्यकुमार रूप, सौभाग्य, विज्ञान, विनय, चतुरता आदि अनेक गुणों की खान है। निष्कारण उपकारी इसको नैमित्तिक के वचन सुनकर कुसुम श्रेष्ठी ने, धूर्त के वचन रूपी कारागार से मुक्त कराने के उपकार को स्मरण करके गोभद्र श्रेष्ठी ने तथा अनेक उपकारों व गुणों का स्मरण करते हुए स्नेह - लता की वृद्धि के लिए मैंने भी अपनी-अपनी कन्याएँ इसको दी हैं । वे वत्स ! इसके इन अपार गुणों को तुम तब ही जान पाओगे, जब इसके साथ तुम्हारा परिचय बढ़ेगा ।" इस प्रकार पिता के मुख से धन्य के गुणों की प्रशंसा सुनकर गुणानुरागियों में प्रमुख अभय उसी दिन से प्रमोद भाव से गुणों के कारण धन्य पर गाढ़ प्रीति को प्राप्त हुआ । दूसरे दिन अभय स्वयं ही अत्यधिक प्रेम को धारण करते हुए बहनोई का सम्बन्ध होने से धन्य के घर गया । धन्य भी अभय के आगमन को सुनकर सहसा उठकर कितनी ही दूर उसके सम्मुख आया। अभय रथ से नीचे उतरा । गाढ़ आलिंगन के साथ दोनों ने परस्पर अभिवादन किया। फिर घर में प्रवेश करते समय पहले आप - पहले आप करते हुए शिष्टाचार और बहुमानपूर्वक घर में ले जाकर भव्यासन पर बिठाकर कहने लगा- "आज आपने सेवक पर महती कृपा की। आज मेरे घर पर बिना बादलों के वृष्टि हुई है। प्रमादी लोगों के घर पर गंगा अपने आप आ गयी है। आपने अपने आगमन से मेरे घर को पवित्र किया है। आज मेरा दिन धन्य हुआ, जो आपने मुझे दर्शन दिये। पर आपने इतना श्रम क्यों किया? मैं तो आपका सेवक हूँ। आपने इशारा ही किया होता, तो मैं हाजिर हो जाता । " इस प्रकार के वचनों के सुनकर अभय ने धन्य को हाथ से पकड़कर खींचते हुए अपने बराबर के आसन पर बैठाया और कहा - " हे इभ्य श्रेष्ठी ! इस प्रकार न बोलें, क्योंकि आप तो हमारे लिए लौकिक और लोकोत्तर दोनों प्रकार से पूज्य हैं। लौकिक सम्बन्ध में आप मेरे बहनोई हैं। लोकोत्तर सम्बन्ध से आप
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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