SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धन्य-चरित्र/173 समय की क्रिया से गर्भित यह समस्या है। वहाँ धीवर कांटे में मांसखण्ड बाँधकर मत्स्य को देता है, उससे धीवर दाता जानना चाहिए, मांसखण्ड देय द्रव्य है। उस मांसखण्ड को लेने के लिए मत्स्य प्रवृत्त होता है, अतः प्रतिग्राही मत्स्य है। इस क्रिया में दाता तथा प्रतिग्राहक-दोनों को जो फल मिलता है, वह तो सर्वजन-विदित ही है। दाता धीवर है, जो नरक में जाता है। प्रतिग्राही मत्स्य नहीं जीता है अर्थात् मर जाता है। अब दूसरे श्लोक का अर्थ सुनो__ सरोवर की शोभा क्या है-जल! दानियों में अधिकतर-बल नामक राजा है, जो मरण के समय निःस्वत्व हो जाने से ब्राह्मण को क्या दूँ'-इस प्रकार खेद को प्राप्त हुआ, तब ब्राह्मण ने कहा कि आपके दाँतों के बीच सोने की दाढ़ है, वह दे दीजिए। बलराजा ने कहा कि 'बहुत अच्छा'। ऐसा कहकर पत्थर से दाँत तोड़ने को प्रवृत्त हुआ। ऐसे महासत्व को देखकर देव प्रसन्न हो गया। अतः सर्वाधिक दाता बलराज है। अर्थ-ग्रहण (धन के ग्रहण) में निपुण वेश्या है, क्योंकि सर्व कला में निपुण धूर्तों का भी धन अपने अर्जन की कला से सुखपूर्वक ग्रहण कर लेती है। अतः अर्थ-ग्रहण में निपुण वेश्या है। मरुस्थल में पुरुष कम्बल–वसना है, क्योंकि मरुस्थल में उत्पन्न पुरुष प्रायः कम्बल के परिधान से निर्वाह करते हैं। इस प्रकार कन्या की दोनों समस्याओं का अर्थ धन्य ने बुद्धि-बल से केवली की तरह शीघ्र प्रतिपत्र में लिखकर कन्या के पास भेजा और लिखा कि मेरे द्वारा लिखे हुए एक श्लोक के अर्थ को तुम्हें बताना होगा। जैसे न लगेन्नाग-नारंगे निम्ब-तुम्बे पुनर्लगेत्। लगेत्युक्ते लगेन्नैव मा मेत्युक्ते भृशं लगेत्।। अर्थात् नाग-नारंग कहने पर नहीं लगता, पर निम्ब-तुम्ब करने पर लगता है। लगे-ऐसा कहने पर नहीं ही लगता, पर मा-मा कहने पर बहुत लगता है-ऐसा क्या है? इस प्रकार धन्य के लिखे हुए भूर्जपत्र को दासी द्वारा कन्या को दिया गया। कुमारी उसके द्वारा लिखे गये दोनों पहेलियों को पढ़कर चमत्कृत हो गयी।'अहो! इसका बुद्धि-कौशल्य! इस प्रकार मस्तक हिलाते हुए आगे पढ़ने लगी, तब उसके द्वारा लिखे गये श्लोक को पढ़ा। पर उसके रहस्य को नहीं जान पायी। प्रबल ईहा-अपोह आदि से मन्थन करने पर भी उसके अर्थ रूपी नवनीत को न पा सकी। तब वह मृगाक्षी महान आश्चर्य को वहन करते हुए धन्य के पास आकर मान का त्याग करके धन्य के कहे हुए श्लोक का अर्थ पूछा। तब धन्य ने भी थोड़ा हँसते हुए उसका अर्थ बताते हुए कहा कि इसका उत्तर स्पष्ट ही 'ओष्ठ-पुट' है। इस प्रकार सभ्यजनों के समक्ष कुमारी की कही हुई समस्या का उत्तर देने से तथा धन्य की कही हुई समस्या के समाधान को नहीं जान पाने से कुमारी की
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy