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________________ धन्य-चरित्र/154 चली जाओ। हम तो अब देशान्तर जायेंगे।' यह सुनकर वे दोनों अपने-अपने पिता के घर चली गयीं। बिना पति के कठिनाई से रहने योग्य घर में कौन रहता है? मुझे भी आज्ञा दी गयी कि तुम भी पिता के घर जाओ'। ___ मैंने कहा-'मैं पिता के घर नहीं जाऊँगी। प्रतिक्षण श्वसुर कुल की निंदा का श्रवण करने में मैं समर्थ नहीं हूँ। अतः सुख अथवा दुःख में जो आपकी गति होगी, वही मेरी भी होगी।" यह सुनकर आदर सहित मुझको लेकर कुटुम्ब सहित मेरे श्वसुर वहाँ से निकलकर बहुत से ग्राम, नगर, पुर आदि में घूमते हुए यहाँ आ गये। तुम्हारे पति तालाब की खुदाई करवा रहे हैं यह बात सुनकर यहाँ आकर अपने उदर की पूर्ति के लिए तालाब खोदने का कार्य करते हैं। हे सखी! दुःस्थित जठर की अग्नि को बुझाने के लिए क्या-क्या नहीं करना पड़ता? क्योंकि 'स्वेच्छाचारी क्या नहीं बोलता और निर्धन क्या नहीं करता?' सातों भयों के बीच में आजीविका भय अति दुस्तर है, क्योंकि ___ जीवतां प्राणिनां मध्ये राहुरेको हि जीवति। यत्तस्य उदरं नास्ति धिक्कारशतभाजनम् ।।1।। अर्थात् जीवित प्राणियों के मध्य एक राहु ही जीता है, क्योंकि सैकड़ों धिक्कार के पात्र रूप यह उदर उसके नहीं है। और भी किं किं न कयं को को न पत्थिओ, कह कह न नामियं सीसं। दुब्भरउयरस्स कए किं किं न कयं, किं किं न कायव्वं? ||1|| अर्थात् क्या-क्या नहीं किया? किस-किस से प्रार्थना नहीं की? कहाँ-कहाँ शीष नहीं नमाया? कठिनाई से भरने योग्य इस पेट के लिए क्या-क्या नहीं किया और क्या-क्या नहीं करना चाहिए? इन दुःखों के लिए किसी का भी दोष नहीं है। यह दोष तो पर्वभव में प्रमादवश जीवन द्वारा किये गये कर्मों का है, जो उदय में आये हैं। तीन लोक में किसी के भी द्वारा कर्म-फल के भोग से नहीं बचा गया। प्राणियों के मध्य जो अति बलवान हैं, वे नया नहीं बाँधते। पर पूर्वकृत कर्मों को तो भोगकर ही निर्जरा करते हैं। अतः कर्म जैसे नचाते हैं, जीव वैसे ही नाचता है।" इस प्रकार दोनों परस्पर वार्तालाप कर ही रहीं थी कि तभी अपनी आकृति को कुछ-कुछ छिपाता हुआ धन्य वहाँ आया। तब दोनों ही लज्जा और मर्यादा करके यथायोग्य बैठ गयीं। तब धन्य ने गोभद्र श्रेष्ठी की पुत्री सुभद्रा को कपटपूर्वक इस प्रकार कहा-'हे भामिनी! प्राणाधीश के बिना प्राणों को कैसे धारण करती हो? पानी के सूख जाने पर तो काली मिट्टी भी हजारों प्रकार से विदीर्ण हो जाती है।" वह बोली-'राजन! आशा से बंधा हुआ मेरा जीवन मरण से रक्षा करता है, जैसे कि सूखे हुए पुष्पवृन्द की स्थिर वृन्दापाश रक्षा करता है। जैसे कि सूखे हुए
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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