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________________ धन्य-चरित्र/148 यह सुनकर धनसार ने पुनः प्रणाम करके धन्य को कहा-"स्वामी! मैं अकेला घी का भोजन करता हुआ अच्छा नहीं दिखता हूँ। अतः मेरे इन सहकर्मियों को भी ऐसा भोजन मिल जाये, तो आपकी बड़ी मेहरबानी होगी। आप जैसे दानवीरों के लिए यह पंक्ति भेद शोभा नहीं देता। अतः महान कृपा कीजिए, जिससे मेरे ऊपर की गयी आपकी कृपा श्लाघनीय बन जाये।' तब धन्य ने भी अति विनय से युक्त होकर "पिता के वचनों को प्रमाण मानना चाहिए' इस प्रकार विचार करके सभी कर्मकरों को भी घृत का आदेश दे दिया। यह सुनकर सभी मजदूर सन्तोष को प्राप्त हुए तथा सभी धनसार के अनुकूल होकर उसकी प्रशंसा करने लगे। ___ इस प्रकार धन्य घृत दान के रस के द्वारा उन्नत मेघ से वृक्षों को सरसित करने के समान मजदूरों की खुशियों को सरसब्ज बनाता हुआ अपने स्थान पर चला गया। पुनः दूसरे दिन भी पिता आदि का सत्कार करने के लिए वन में वृक्षों को पल्लव-युक्त करने के लिए बसन्त की तरह आ गया। बीते हुए दिन की तरह सभी पिता आदि कर्मकरों के द्वारा प्रणाम आदि उचित प्रतिपत्ति की गयी। उसके बाद धन्य भी यथायोग्य आसन पर बैठकर धनसार को कहने लगा-"तुम्हारे ये तीनों पुत्र कर्मकर हैं, स्त्रियाँ भी सरोवर खोदने का कठिन कार्य करती हैं, तो फिर तुम इतने वृद्ध होते हुए भी अब भी इतनी कठिन क्रिया क्यों करते हो? ये तुम्हारे कैसे पुत्र है, जो तुम्हें इस कठिन काम को करने से रोकते भी नहीं है?' धनसार ने कहा-"स्वामी! हम गरीब और आलम्बन रहित हैं। किसी पुण्य के योग से ही इस धनोपार्जन के उद्यम को पाकर लोभ से अभिभूत होकर कुछ अधिक धन-वृद्धि के लोभ से वृद्ध होने पर भी मजदूरी करता हूँ। दरिद्रता के ताप का निवारण करनेवाला आप सरीखा घनघोर मेघ पुनः-पुनः कहाँ मिलेगा? इस अवसर पर उपार्जन किया हुआ धन भविष्य में व्यापार आदि कार्यों में काम आयेगा। अतः शरीर की चिन्ता की उपेक्षा करके उद्यम करता हूँ।' तब धन्य ने हँसते हुए सभी मजदूरों तथा अधिकारियों को बुलवाकर आदेश दिया-“हे मजदूरों! यह वृद्ध जरा से जीर्ण होने से खनन क्रिया करने के योग्य नहीं है। अतः मुझे इस पर दया आती है। आज के बाद कोई भी इससे किसी भी तरह का कार्य नहीं करवायेगा तथा वृत्ति भी इसको सभी के समान दी जायेगी।' 'जैसी आपकी आज्ञा” इस प्रकार कहकर सभी ने प्रणाम किया। धन्य इस प्रकार करके घर चला गया। तब सभी मजदूर परस्पर इस प्रकार कहने लगे-'यह वृद्ध पूर्व में पुण्य उपार्जित करके यहाँ आया है, जिससे कि राजा के दर्शन मात्र से इसकी मजदूरी का दुःख चला गया। अन्य किसी ने कहा-'क्या नहीं सुना? कहा गया है-"
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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