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________________ धन्य-चरित्र/108 से पकड़कर भूमि पर गिराकर मारता था, किसी को जीर्ण वस्त्र की तरह फाड़ देता था। इस प्रकार के उपद्रव करके पुनः गहन वन में चला जाता था। जिस किसी को भी सीमा में आवश्यक कार्य से जाना होता था, तो उसके चित्त से भय शल्य निकलता ही नहीं था। उस ग्राम में सभी लोग हाथी के भय से त्रस्त थे। __एक बार सुनन्दा आर्या ने अपने ज्ञान-बल से जाना-कल प्रभात के समय गाँव की सीमा पर हाथी का आगमन होगा। यह विचार कर प्रभात सम्बन्धी प्रतिलेखना करके स्थण्डिल भूमि जाने के बहाने से एक अन्य साध्वी के साथ निकली। __जब गोपुर के समीप आयी, तब हाथी के भय से त्रस्त, भय से कम्पित भागते हुए लोगों ने पुर से बाहर जाती हुई साध्वियों को देखकर कहा-"माता! आर्यिका! बाहर न जावें, क्योंकि यम का सहोदर हाथी ग्राम के समीप घूम रहा है। मनुष्य को देखकर तो अवश्य ही दौड़ता है। सूंड पर चढ़ाकर मारता ही है। अतः यहाँ से लौटकर अपने स्थान पर चली जावें। अभी बाहर जाने का अवसर नहीं है।" उनके वचन सुनकर सुनन्दा साध्वी ने अपने साथ आयी हुई साध्वी से कहा-“हे आर्ये! तुम यही ठहरो।" उसने कहा-"जैसी आपकी आज्ञा। परन्तु ये भय से काँपते हुए, आते हुए लोग बाहर जाने का निषेध कर रहे हैं। फिर आप वहाँ क्यों जा रही हैं?" सुनन्दा आर्या ने कहा-"मुझे कुछ भी भय नहीं है, क्योंकि उसी को प्रतिबोध देने के लिए जा रही हूँ। यह हाथी प्रतिबोध को प्राप्त होगा। गाँव के लोगों का भय भी दूर होगा और शासन की उन्नति भी होगी। अतः थोड़ी भी चिंता नहीं करनी चाहिए। सब अच्छा ही होगा।" इस प्रकार शिक्षा देकर एकाकी ही सुनन्दा आर्या बाहर जाने के लिए प्रवृत्त हुई, तब दूर व निकट रहे हुए लोग चिल्लाये-'हे आर्यिके! बाहर मत जाओ। हाथी तुम्हारा पराभव कर देगा। क्यों निष्कारण अनर्थ में गिरती हो?" __सुनन्दा तो मौन धारण करके अपने मार्ग पर चलने लगी। गाँव से बाहर निकली, तो वट आदि महा-वृक्षों के ऊपर स्थित लोगों ने बाहर जाती हुई साध्वी को देखकर उसका निषेध करते हुए कहा-"मत जाओ-मत जाओ।" __इस प्रकार बार-बार निषेध करने लगे। पर सुनन्दा ने न तो कोई प्रत्युत्तर दिया, न ही ध्यान दिया। निर्भीकता से चलती गयी। तब लोग परस्पर बोलने लगे-"क्या यह साध्वी बहरी है? क्या यह
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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