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________________ धन्य-चरित्र/102 से उतारकर झरोखे में बिठाया। उस अवसर पर अमुक महा-इभ्य के पुत्र को अत्यधिक रूप-यौवन-चतुरता-वस्त्राभूषण से भूषित चतुष्पथ पर ताम्बूलिक की दूकान में बैठा हुआ देखकर तुम्हारा उस पर काम राग से व्यामोह हो गया। सखी के हाथ में दी गयी पत्रिका प्रमुख के प्रयोग से पूर्वोक्त व्यतिकर द्वारा तुम दोनों में गाढ़ स्नेह हो गया, पर मिलन का अवसर तो दुष्कर था। इस प्रकार मिलन के आर्त्त-ध्यान को धारण किये हुए तुम दोनों को कितना ही समय बीत जाने पर कौमुदी महोत्सव का अवसर प्राप्त हुआ। उस अवसर पर रस्सी की निसरनी के प्रयोग से आगमन का संकेत किया गया। उसने व तुमने शरीर की अस्वस्थ स्थिति का बहाना बनाकर घर रहने का निश्चय किया। रात्रि का एक प्रहर बीत जाने पर सखी द्वारा निःश्रेणी का प्रयोग किया गया। उस अवसर पर तुम्हारे द्वारा अज्ञानता में जो हुआ, उसे सुनो उस नगर में एक महाबल नाम का जुआरी रहता था। उसने द्युत-क्रीड़ा में बहुत सारा धन हार दिया। उस दुःख से व्यथित होकर वह घूम रहा था। इसी समय महोत्सव का आगमन जानकर सोचने लगा-'आज रात में समस्त नागरिक परिवार सहित बाहर जायेंगे और नगर वीरान हो जायेगा। उस अवसर पर मैं नगर में किसी भी धनिक के घर में नकली चाबी के प्रयोग से ताला खोलकर धन ले जाऊँगा। इस प्रकार मेरा दुःख दूर हो जायेगा। यह विचार कर अवसर देखकर एक प्रहर बीत जाने पर धन के लिए निकला हुआ वह घूमता हुआ दैवयोग से तुम्हारे द्वारा कृत सांकेतिक स्थान पर आया। संकेत देखकर कुबुद्धि रूपी शक्ति द्वारा उसने जान लिया कि यहाँ किसी विशेष हेतु द्वारा संकेत किया गया है। अतः मैं भी अपनी कला आजमाता हूँ| इस प्रकार विचार कर उसने निःश्रेणी हिलायी। उसे हिलती हुई देखकर सखी ने वहाँ आकर धूर्त को कहा-“तुम आ गये?" धूर्त ने भी कहा-"हाँ।" सखी ने जाना कि अमुक सांकेतिक पुरुष ही आया है। अतः वहीं रहते हुए उसने तुम्हे बधाई दी। तुम्हारा चित्त भी प्रसन्न हो गया। तब सखी ने कहा-"स्वामी! आइए।" तब धृष्ट हृदयवाले उस धूत ने उसके कहते ही जैसे ही ऊपर चढ़कर गवाक्ष में पाँव रखा, वैसे ही सखी-वृंद के आगमन को देखकर सखी ने हाथ से दीपक बुझा दिया। उस धूर्त का हाथ पकड़कर तुम्हारी शय्या पर छोड़कर सखी-वृन्द को उत्तर देने के लिए अन्दर चली गयी। जाकर सखीवृन्द को कहा
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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