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________________ धन्य-चरित्र/92 ऐसी किसी को भी न हो। अभी दो-तीन घड़ी से शांति है। पुनः चेतना आयेगी, तो अच्छा है। अतः माता से मेरा प्रणाम कहना। जैसा देखा है, वैसा कह देना। पूर्व में अत्यधिक वेदना से पराभूत होने से ज्यादा बोलने में समर्थ नहीं हूँ। पर जान पड़ता है कि माता के शुभ चिन्तन से वेदना चली गयी है। माँ मेरी चिंता न करें-ऐसा बोल देना।" इस प्रकार सुनन्दा की हालत पूछकर तथा पूजा-द्रव्य आदि ग्रहण करके सखी-वृंद सैनिकों के साथ उपवन चली गयीं और रानी को सब कुछ निवेदन किया। रानी भी स्वस्थ-चित्त होकर महोत्सव में लीन हो गयीं। ___ अब विषय से आकुल रूपसेन की घटना सुनो। रूपसेन भी शरीर की अस्वस्थता का बहाना बनाकर पिता आदि को छलकर अकेला ही घर पर रह गया। सुनन्दा के मिलने के मनोरथ से पूर्ण हृदयवाला होकर रात्रि का प्रथम प्रहर बीत जाने के बाद सम्पूर्ण भोग सामग्री लेकर घर के कपाट पर ताला लगाकर उसे दृढ़तर करके निकल गया। मन में विविध मनोरथों का चिंतन करते हुए मार्ग में चलने लगा। जैसे-"आज मेरी रात्रि धन्य है कि मन-वचन-काया की एकतानता के साथ प्रेम करनेवाली राजकुमारी से मिलन होगा। मूर्ख के साथ सम्पूर्ण जन्म की संगति से जो सुख नहीं होता, वह सुख चतुर–जनों के घटिका-मात्र के संयोग से होता है। उसे कह पाना शक्य नहीं है। मैं वहाँ जाकर से उत्पन्न दुःख का नाश करके विविध सूक्ति-सुभाषित-पहेलियों-छन्द-छप्पय-अन्तर्लापिकाबहिर्लापिका-समस्या-गाथा -गूढ़ दोहे आदि निपुण उक्तियों द्वारा उसके चित्त का रंजन करूँगा। वह भी अत्यधिक विदुषी है। विविध आशय से गर्भित हाव-भाव, कटाक्ष- विक्षेप, वक्रोक्तियों द्वारा मेरे हृदय को आह्लादित करेगी। हम परस्पर चित्त-विरह से उत्पन्न दुःख को कहेंगे तथा चाटु वचनामृत से सिचिंत मनोरथ रूपी वृक्ष नव–पल्लवित होगा। मेरे चातुर्य से आह्लादित हृदयवाली वह कल्पलता की तरह मनोरथ–फल को देनेवाली होगी। विविध आसन, काम के निवास रूप स्थानों के मर्दन, आलिंगन आदि सुरत-क्रियाओं द्वारा देवी-देवताओं की तरह सुरत-क्रीड़ा करेंगे।" इत्यादि मनोरथों द्वारा आर्त्तध्यान से भरे हृदयवाला रात्रि तथा राग के अधंकार में उसे ही स्मरण करता हुआ मार्ग में जा रहा था। तभी किसी स्वामी रहित आवास की बहुत बड़ी भींत वर्षा जल के प्रवाह से शिथिल तथा अपरिकर्मित होती हुई उस रूपसेन के ऊपर गिर गयी। उसके पतन के घात से अंगोपांग के चूर-चूर हो जाने से रूपसेन पंचत्व को प्राप्त हुआ और एक दिन की ऋतु-स्नाता सुनन्दा की कुक्षि में जुआरी-कृत संयोग से जन्य वीर्य रक्त में गर्भ
SR No.022705
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay, Premlata Surana,
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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