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________________ भीम कुंडलिया अर्थात् सर्ववदान महामात्य बाहड द्वारा हुए शत्रुजय तीर्थोद्धार का प्रतिष्ठा-महोत्सव चल रहा था । तब निर्धन भीम ने अपने गाँव टीमाणा से घी लाकर संघ में बेचा, जिसका मूल्य एक रुपया और सात द्रम्म आये थे । इसमें से एक रुपये के फूल लेकर प्रभु की पूजा की । बाद में जीर्णोद्धार का इतना बडा कार्य कराने वाले मन्त्री बाहड को देखने की उसे इच्छा हुई । अतः मन्त्री के आवास के द्वार पर पहुँचा, किन्तु अन्दर प्रवेश करने में संकोच का अनुभव करने लगा। . सर्वस्व दान मन्त्री बाहड ने इसके मनोगत भावों को जान लिया और इसे बुलाकर अपने समीप बैठाया । बाद में मन्त्री ने बडे प्रेम से कहा- तू मेरा साधर्मिक बन्धु है, कुछ भी कार्य हो तो नि:संकोच बतला । इसी समय तीर्थोद्धार की रकम पूरी करने हेतु चन्दा हो रहा था, उसमें भीम ने बचे हुए सात द्रम्भ चन्दे में दे दिये जो इसका सर्वस्व था । मन्त्री ने भीम की त्यागभावना से प्रसन्न हो कर उसका नाम दाताओं की सूची में सर्वप्रथम लिखवाया । इतना ही नहीं, मन्त्री ने सन्मान में ५०० द्रम्भ और तीन रेशमी वस्त्र इसके सामने भेंट रूप में रक्खे, तब भीम ने हँसकर कहा- मन्त्रीश्वर ! इस धन के लोभ में मैं अपना पुण्य नहीं बेच सकता हूँ । भीम का उत्तर सुनकर मन्त्री ने इसे खूब-खूब धन्यवाद दिये । अन्त में ताम्बूल प्रदान कर इसका सन्मान किया । भीम शाम को जब घर पहुँचा उसे अपनी पत्नी, जो चण्डिका स्वरूप थी, बडी शान्त नजर आई, क्योंकि आज उसे गाय बांधने के खूटे को ठीक करते चार हजार सोना मुहर मिली थी और इसी की बधाई देने के लिए वह अपने पतिदेव का इन्तजार कर रही थी। भीम ने यह बात अपनी पत्नी से सुनी तब उसे निश्चय हो गया कि यह प्रभु-पूजा का फल है । अत: दूसरे दिन संघ में आकर ये सोना मुहर उसने तीर्थ में व्यय करने के लिए मन्त्री बाहड को भेंट कर दी। इसी रात्रि में कपर्दी यक्ष ने आकर भीम से कहा- मैं तेरी पुष्प-पूजा से प्रसन्न हुआ हूँ । इसीलिए मैंने तुझे यह धन दिया है । इस धन का तू स्वयं के लिए और शुभ कार्यो में व्यय करना, अब यह धन तेरे यहाँ कम न होगा। (७७)
SR No.022704
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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