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________________ आ.श्री रत्नप्रभसूरि ने 'उपदेशमाला' की 'दोघट्टी' टीका रची जिसका संशोधन आ.श्री भद्रेश्वरसूरि ने किया । इन्होंने ही 'प्रमाणनयतत्त्वावलोक' पर लघुवृत्ति 'रत्नाकरावतारिका' ग्रन्थ की भी रचना की । इसी बीच नागेन्द्रगच्छीय आ.श्री आनन्दसूरि तथा आ.श्री अमरचन्द्रसूरि हुए, जो बाल्यकाल से ही समर्थ वादी थे । इनकी वादशक्ति से प्रभावित होकर सिद्धराज जयसिंह ने इन्हें 'व्याघ्र शिशु' और 'सिंह शिशु' का बिरुद दिया था। आ.श्री अमरचन्द्र सूरि ने 'सिद्धान्तार्णव' ग्रन्थ की रचना की। खरतर गच्छ आ.श्री. जिनवल्लभसूरि के शिष्य आ.श्री जिनदत्तसूरि से वि.सं. १२०४ में खरतर गच्छ निकला । प० कल्याणविजयजी के मत से ये कर्कश भाषी थे अतः इनका गच्छ खरतर कहलाया। इस मत की विशेषताएँ :- छह कल्याणक, स्त्री के लिए जिनपूजा का निषेध इत्यादि हैं । अंचलगच्छ आर्यरक्षितसूरि अपर नाम विजयचन्द्रसूरि से यह मत वि.सं. १२१३ में निकला । अभिवर्धित वर्ष में बीसवें दिन संवत्सरी करना, श्रावकों को मुहपत्ति न रखनी, किन्तु वस्त्र के अंचल से वंदन करना इत्यादि इस गच्छ की विशेषताएँ हैं । आचार्य श्री मलयगिरि आ. श्री मलयगिरि बारहवीं शती के उत्तरार्ध में समर्थ ग्रन्थकार हुए । सरस्वती देवी से आपको वरदान प्राप्त था। रायपसेणियसुत्त, जीवाजीवाभिगमसुत्त, पन्नवणासुत्त, सूरपण्त्ति , चंदपण्णत्ति, जंबूदीवपण्णत्ति, नंदिसूत्र, ववहारसुत्त, ज्योतिष्करण्डक, कम्मपयडी, धर्मसंग्रहणी, पंचसंग्रह, बृहत्क्षैत्रसमास, ओधनियुक्ति इत्यादि ग्रन्थों पर आपने संपूर्ण वृत्ति तथा बृहत्कल्पसूत्र और आवश्यकसूत्र पर आंशिक वृत्ति रची। (६६)
SR No.022704
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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