SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशकीय निवेदन पाठकवर्ग के समक्ष 'जैन इतिहास' प्रस्तुत करते हम आन्तरिक प्रमोद का अनुभव कर रहे हैं । यह अपने ढंग की एक अद्वितीय रचना है। इसके अध्ययन से पाठकों को अपने गौरवमय अतीत का बहुत कुछ आभास हो सकेगा। प्रस्तुत पुस्तक न बहुत बृहत्काय है और न अति संक्षिप्त हो । इस कारण सभी श्रेणी के पाठकों को समान रूप से उपयोगी सिद्ध होगी। विशेषतः धार्मिक शिक्षणशिबिरों के लिए तो अत्यन्त आवश्यक और उपयुक्त रहेगी। प्रस्तुत पुस्तक के रचयिता परमपुज्य विद्वद्रत्न आचार्य श्री कुलचन्द्रसूरीश्वरजी म.साहेब प्रख्यात साहित्यमनीषी हैं । आपकी और से शिबिरोपयोगी साहित्य पूर्व में भी लिखा गया है। साथ ही आचारांगसूत्र एवं कल्पसूत्र की सुबोधिका आदि अनेक टीकाओं की भी रचना की गई हैं। आचार्य श्री सतत साहित्यसंरचना में तत्पर हैं और आपश्री की रचनाएँ युग की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर होने से महान् उपकारक हैं । इस महान् उपकार के प्रति हम किन शब्दों में कृतज्ञता प्रकट करें ? वास्तव में हमारे पास पर्याप्त शब्द नहीं हैं । आशा है भविष्य में भी आपकी ओर से श्री संघ को साहित्यक बहुमूल्य प्रसाद प्राप्त होता रहेगा। हमारा बडा सौभाग्य है कि इस रचना को प्रकाशित करने का सुअवसर हमें प्राप्त हुआ है। पूर्ण विश्वास है कि प्रस्तुत रचना से पाठकगण पूरा - पूरा लाभ उठाएँगे। इति शुभम्। - दिव्यदर्शन ट्रस्ट
SR No.022704
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy