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________________ कविराज के उत्तर से राजा भोज भौंचक्का रह गया। (३) एक बार राजा ने कहा- कविवर ! महाकाली के मन्दिर में पवित्रारोह का महोत्सव होता है। तुम्हारे देव का ऐसा महोत्सव क्यों नहीं होता? धनपाल ने उत्तर दियाहे राजन! पवित्रारोह तो जो अपवित्र है उसे पवित्र करने के लिए होता है। जबकि श्री जिनेश्वर देव तो सदा पवित्र है, उन्हें पवित्र करने की कोई जरुरत नहीं। कवि धनपाल ने आत्मकल्याण के लिये धारा में ही भगवान् श्री आदीश्वर का मनोहर मन्दिर बनवाया, जिसकी प्रतिष्ठा आ० श्री महेन्द्रसूरि से करवाई और वहाँ निरन्तर पूजा चालू रखी । भगवान् की स्तुतिरूप 'ऋषभपंचाशिका' भी रची । इसी समय कविराज ने भगवान् ऋषभदेव की स्तुतिप्रधान गद्यकथा बारह हजार श्लोक प्रमाण रची, जिसका संशोधन आ० श्री शान्तिसूरि (वादिवैताल) से करवाया । सर्दी की रात्रियों में कविराज ने इस ग्रन्थ को पढकर राजा भोज को सुनाया, जिसके काव्य-लालित्य से राजा अत्यन्त प्रसन्न हुआ और कहने लगाहे मित्र ! मेरी एक माँग है कि इस कथा में 'जिन' के स्थान पर 'शिव' 'अयोध्या' के स्थान पर 'अवन्ती' (धारा), 'शक्रावतार चैत्य' के स्थान पर 'महाकाल मन्दिर', 'ऋषभदेव' के स्थान पर 'महादेव' और 'इन्द्र' के स्थान पर 'भोज' इतना परिवर्तन कर दें, मैं मुँह मांगा पारितोषिक दूंगा । इतना ही नहीं, तुम्हारी यह कथा अमर बन जायगी, इसमें तनिक भी शंका मत रखो । कविराज ने उत्तर दिया- हे राजन् ! यह परिवर्तन करना तो मेरे मन बडा अपराध होगा। दूसरे शब्दों में कहूँ तो यह मेरी आत्म-हत्या होगी । दूध के भाजन में शराब की बूंद भी गिर जाय तो पूरा भाजन अपवित्र हो जाता है । सूर्य और जुगनू में जो अन्तर है वह सदा के लिए अमिट है। रामा को इस नग्न सत्य से बडा गुस्सा आया और उसने कथाग्रन्थ को जलती हुई सिगडी में फेंक कर जला दिया । कविराज को इस प्रसंग से तीव्र आघात लगा और दुःखी दिल से घर आकर वह शय्या में लेट गये । कविराज की नौ वर्ष की नन्हीं पुत्री तिलकमंजरी अपने पिता की विह्वलता को भाँप गई और कारण पूछने लगी। कविराज ने राजमहल की घटना को दुहराया, तब तिलकमंजरी अपने पिता को आश्वासन देते हुए बोली- पिताजी ! आप जरा भी चिन्ता न करें, मुझे कथा अक्षरशः याद है। (५९)
SR No.022704
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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