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________________ स्तंभनपार्श्वनाथ की प्रतिमा प्रकट हुई, जिसके न्हवण - जल से आपका रोग मिट गया । आपने स्थानांगादि नौ अंगसूत्रों की टीकाएँ रचीं, जिनका संशोधन उस समय के श्रुतवृद्ध आ० श्री द्रोणाचार्य ने किया । अन्य ग्रन्थों की भी आपने रचना की । वि.सं. १९३५ के आसपास आप स्वर्गवासी हुए । मुहम्मद गजनी 1 मुहम्मद गजनी ने वि.सं. १०८० में भारत पर आक्रमण किया । वि.सं. १०८१ में भिन्नमाल, पाटण, चन्द्रावती, जूनागढ, देलवाडा ( आबू) सोमनाथ वगैरह मन्दिरों को तोडा और लूटा । लौटते समय अज्ञात रास्ते से सिन्ध में हो कर गजनी पहुँचा, जिसमें उसके सैन्य की काफी हानि हुई । आचार्य श्री शान्तिसूरि (वादीवेताल) राधनपुर के पास के उण गाँव के श्रेष्ठी धनदेव के पुत्र भीम ने थारापद्रगच्छ के आ० श्री विजयसिंहसूरि के पास दीक्षा ली, जिसका नाम शान्तिभद्र रखा गया । राजगच्छीय अभयदेवसूरि के पास आगमशास्त्रों का अभ्यास किया । आचार्य पद के समय आपका नाम श्री शान्तिसूरि रखा गया । राजा भीमदेव की राजसभा में आपको 'कवीन्द्र' और 'वादिचक्रवर्ती' के बिरुद मिले । घारा नगरी में भोज राजा की सभा के प्रधान कवि धनपाल ने 'तिलकमञ्जरी' ग्रन्थ की रचना की, जिसका संशोधन आपने वि.सं. १०८३ के आसपास किया । सरस्वती देवी से आपको आशीर्वाद प्राप्त था कि आप हाथ ऊँचाकर वाद करने पर विजयी बनेंगे । राजा भोज की सभा में ८४ वादियों की जीत लेने पर आपको "वादिवेताल" का बिरुद प्राप्त हुआ । एक बार पाटण में किसी श्रेष्ठिपुत्र को सर्पदंश के कारण मृत मानकर जमीन में गाड दिया था, जिसे आपने बाहर निकलवाकर हाथ के स्पर्श मात्र से पुन: जीवित किया था । (५२)
SR No.022704
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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