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________________ खून की उल्टियाँ करा दी और निश्चेष्ट कर दिया। लडकों के माँ बापों ने आपसे माफी मांगी औरआपका चरणोदक लडकों पर छांटा, तब लडके स्वस्थ हो गये । आपकी क्षमाशीलता से आपका नाम खिमऋषि रखा। आप धोर तप और विविध अभिग्रह करते थे। एक बार “धारापति मुंज के छोटे भाई सिंधुल का मित्र 'रावकृष्ण नहाया हो। केश बिखरे हों। और उद्विग्न हो' इस स्थिति, में अमुक, मालपुडे वहरावे तो पारणा करूँ। यह अभिग्रह ३ महीने और ८ दिन में पूर्ण हुआ। दुसरी बार सिन्धुलका हाथी पांच लड्डु वहरावे तो पारणा करूँ। यह अभिग्रह ५ महीने और १८ दिन में पूरा हुआ । आपने ऐसे अभिग्रह कुल ८४ किये जो सभी पूर्ण हुए। एक बार बन्दर ने तथा एक बार मदोन्मत साँड ने आपको पारणा कराया था। कहीं नहीं तो आकाश से कुसुम-वृष्टि भी हुई। एक बार मुंज राजा के सभी हाथी पागल हो गये, जो खिमऋषि के चरणोदक छाँटने से स्वस्थ हुए । एक श्रेष्ठीपुत्र सर्प के दंश से मृतप्राय हो गया था, जो आपके चरणोदक से पुनः उज्जीवित हुआ। ___ कृष्ण राव ने आपसे अपना अल्प आयुष्य जान दीक्षा ली और कृष्णऋषि नाम धारण किया। इस समय भी गगन से पुष्पवृष्टि हुई । कृष्णऋषि छह महीने का आयुष्य पालकर स्वर्ग सिधार गये। खिमऋषि ने ३० वर्ष की वय में दिक्षा ली, ७ वर्ष गुरुसेवा की और ५३ वर्ष घोर तप किया। इस तरह आप ९० वर्ष की उम्र में स्वर्गवासी हुए। आचार्य श्री उद्योतनसूरि (34वें पट्टधर) आ श्री विमलचन्द्रसूरि के पट्ट पर आचार्य श्री उद्योतनसूरि हुए। आपने वि. ६६४ में आबू पर्वत के निकट एक वट वृक्ष के नीचे बैठे हुए अपने सर्वदेव प्रमुख आठ शिष्यों को आचार्य पद दियाथा। अतः गच्छ का नया नाम 'वट-गच्छ' प्रसिद्ध हुआ। धीरे धीरे गुणी श्रमणों कि वृद्धि होने से वट-गच्छ का ही नामान्तर 'बृहद् गच्छ' प्रसिद्ध हुआ। आचार्य श्री सर्वदेवसूरि (३६वें पट्टधर) आ.श्री उद्योतनसूरि के पट्ट पर आचार्य श्री सर्वदेवसूरि आये । ये सुशिष्यों की लब्धि वाले थे । आपने वि.सं. ९८८ में हत्धुंडी के राजा जगमाल को (५०)
SR No.022704
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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